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समंदर पार वालों ने हमारा फन नहीं देखा - ग़ज़ल (मिथिलेश वामनकर)

1222-1222-1222-1222

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समंदर  पार  वालों  ने   हमारा  फ़न  नहीं  देखा

जवाँ अहले वतन ने आज तक बचपन नहीं देखा

 

जुरूरी  था, वही  देखा, ज़माने  की  ज़ुबानों  में

कि मीठी  बात देखी है  कसैलापन  नहीं  देखा

   

तबस्सुम देख के  मेरी, तसल्ली  हो गई उनको

हमारी आँख  में  सोया  हुआ सावन नहीं  देखा

  

निजामत का भला अपना वतन कैसा ख़ियाबां है

कि जिसमें गुल नहीं देखे कहीं गुलशन नहीं देखा

 

खुदी को देख के वो तो यकीनन खौफ खा जाती

किसी भी  रात ने कोई  कभी  दरपन नहीं देखा

 

गुजारिश है  गुजारे की, गिरां  कोई  नहीं मांगी         

तसव्वुर में  जहां ऐसा  कभी जबरन नहीं देखा

 

ज़रा तनहां अगर छोड़ा जहां ने रो दिए साहिब

यतीमों का  कभी तुमने  अकेलापन  नहीं  देखा

 

जियारत क्या, परस्तिश क्या, अकीदत क्या, इबादत क्या

किसी मासूम बच्चे का अगर चितवन नहीं देखा 

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(मौलिक व अप्रकाशित)        © मिथिलेश वामनकर

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2014 at 8:30pm
आदरणीया प्रतिभा त्रिपाठी जी आपको ग़ज़ल पसंद आई, लिखना सार्थक हुआ आभार , धन्यवाद।
Comment by gumnaam pithoragarhi on December 20, 2014 at 8:21pm
तबस्सुम देख के मेरी, तसल्ली हो गई उनको

हमारी आँख में सोया हुआ सावन नहीं देखा

वाह बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2014 at 8:14pm
आदरणीय सोमेश जी आपका बहुत बहुत आभार। आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी से रचनाकर्म हेतु बल मिलता है। हार्दिक धन्यवाद
Comment by somesh kumar on December 20, 2014 at 8:07pm

तबस्सुम देख के  मेरी, तसल्ली  हो गई उनको

हमारी आँख  में  सोया  हुआ सावन नहीं  देखा

सुंदर प्रस्तुति ,अंतिम लाइने भी दिल को गहरे तक छु रही हैं ,

  

  

  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2014 at 6:38pm
आदरणीय हरि प्रकाश दुबे जी ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका बहुत बहुत आभार। आपकी उत्साहवर्धक अनुमोदन से रचनाकर्म हेतु बल मिलता है। हार्दिक धन्यवाद।
Comment by Hari Prakash Dubey on December 20, 2014 at 6:10pm

जियारत क्या, परस्तिश क्या, अकीदत क्या, इबादत क्या

किसी मासूम बच्चे का अगर चितवन नहीं देखा ......बहुत ही सुन्दर ,हार्दिक बधाई !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 20, 2014 at 5:48pm
आदरणीय श्याम नरैन वर्मा जी बहुत बहुत आभार धन्यवाद
Comment by Shyam Narain Verma on December 20, 2014 at 5:10pm

इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई आपको

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