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बिन कहा समझते हैं कमाल है (ग़ज़ल 'राज')

212   122   212  12

बिन कहा  समझते हैं कमाल है

क्या से क्या समझते हैं कमाल है

 

मैं मना करूँ तो हाँ जो हाँ करूँ   

तो मना समझते हैं कमाल है

 

शर्म से निगाहें जो  झुकी मेरी  

वो अदा समझते हैं कमाल है

 

कद्र मैं करूँ जज्बात की जिसे     

वो वफ़ा समझते हैं कमाल है

 

 चूड़ियाँ बजें मेरी ये आदतन  

 वो सदा समझते हैं कमाल है

 

 झाँकते वो मेरी आँखों के निहाँ           

 आईना समझते हैं कमाल है

 

सुर्ख देख आँखें नींद से मेरी

वो नशा समझते हैं कमाल है

 

प्यार मर्ज़ दिल का दर्द है फ़कत  

वो दवा समझते हैं कमाल है

 

इश्क या मुहब्बत को मैं इक फितूर  

वो ख़ुदा समझते हैं कमाल है

-------------------------

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 958

Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2014 at 12:06pm

आ० विजय मिश्र जी,इस उत्साह वर्धन हेतु तहे दिल से आभार आपका | 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 16, 2014 at 11:50am

आ० गिरिराज जी .आप जैसा ग़ज़लकार जब पाठक हो तो ग़ज़ल मुस्कुरा उठती है आपको ग़ज़ल पसंद आई ग़ज़ल मुकम्मल हो गई |आदरणीय --आपका मशविरा --चूड़ियाँ बजें   को  चूड़ियाँ बजीं  करना शायद सही हो ? दूसरे अर्थ में सही होता किन्तु यहाँ काल दोष पैदा हो जाएगा क्यूंकि सानी में आज की या रोज मर्रा की बात हो रही है उसी को ध्यान में रखते हुए बजें अर्थात (अक्सर बजा करती हैं आदत से )भाव लिया है --यदि बजी करती तो नीचे सानी में समझे होना चाहिए था जो नहीं हो सकता ,आशा है मैं अपनी बात स्पष्ट कर पाई |बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय |

Comment by विजय मिश्र on December 16, 2014 at 11:46am
आ० राजेशजी !
क्या खूब लीक्खी हैं एक -एक
आता बेमिसाल है ........ |

बारम्बार बधाई एवं साधुवाद |

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 16, 2014 at 9:55am

आदरणीया राजेश जी , एक और बढ़िया ग़ज़ल के लिये दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ।

चूड़ियाँ बजें   को  चूड़ियाँ बजीं  करना शायद सही हो ?


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2014 at 8:03pm

आ० डॉ० विजय शंकर जी,ग़ज़ल आपको पसंद आई,शेर अपनी बात कह पाए आप सुन पाए  एक लेखक को और क्या चाहिए,मेरा लेखन कर्म सफल हुआ तहे दिल से आभार आपका सादर .   

Comment by Dr. Vijai Shanker on December 15, 2014 at 7:56pm
है क्या ,
क्या वो समझते हैं ,
कमाल है ।
हाँ को न, न को हाँ ,
समझते हैं , कमाल है ॥
समझ ही तो है जो क्या को क्या बना देती है।
होता जो है , उसे कुछ का कुछ बना देती है ॥
बहुत ही मन भावक , बधाई आदरणीय राजेश कुमारी जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 15, 2014 at 7:29pm

आ० डॉ० गोपाल नारायण जी ,ग़ज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया से अभिभूत हूँ इस उत्साहित करती प्रतिक्रिया के सम्मुख नत हूँ दिल की गहराई से धन्यवाद प्रेषित है आदरणीय मेरा लिखना सार्थक हुआ | 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 15, 2014 at 3:19pm

महनीया

क्या कमाल की गजल कही  है

हम भी यही कहते है,कमाल है

राजेश कुमारी जी की फितरत

को सभी जानते है कमाल है

पहले भी बहुत बाकमाल देखा

जिसने भी पढा बोला कमाल है

और कितने मोती  है खजाने में

किसी को पता नहीं कमाल है

अभी क्या देखा और क्या पढा

है जो अब आने वाला कमाल है ---------- सादर i


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 14, 2014 at 12:18pm

मिथिलेश जी,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ तहे दिल से आभारी हूँ  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on December 14, 2014 at 12:06pm
आदरणीया राजेश कुमारी जी उम्दा ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई स्वीकार करें।
बेहतरीन शेर
इश्क़ या मुहब्बत को मैं इक फितूर
वो ख़ुदा समझते है कमाल है

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