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अपनी दिवाली (लघुकथा)

"माँ ! आज मैं सुबह ही सभी के घर जाकर,  दियो में बचे हुए तेल इकठ्ठा कर लाया हूँ,
आज तो पूड़ी बनाओगी ना? "

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 20, 2014 at 5:57pm

पवन जी

संभवतः कुछ लोग आपकी लघु कथा से सहमत न हो और इसे मात्र व्यंग समझे i कथा के प्रमुख तत्त्व है - वस्तु, चरित्र, सवाद वातावरण, भाषा और उद्देश्य i लघु कथा में सारे तत्व अनिवार्य भी नहीं है i आपकी कथा की वस्तु यह है कि एक लड़का जिसे दीवाली में भी पूडी  नसीब  नहीं हुयी वह एक अवांछनीय  कृत्य कर दिये  के बचे तेल बटोर लाया है इस आशा में  में कि शायद इससे पूडी  बन सके i  चरित्र  दो है माँ और बेटा i कहानी मे एकल संवाद है जो पर्याप्त है i  भाषा  कथा के अनुरूप है i वातावरण स्पष्ट है की दीपावली बीत चुकी है i  व्यंग्यार्थ इतना स्पष्ट है कि उद्देश्य बताने की आवश्यकता नहीं i  मुझे आपकी कथा में कोई कमी नहीं लगती i  आश्चर्य है कि आपको उचित मार्क्स नहीं मिल रहे i आप जैसे नए और युवा लेखा को ऐसी रचना पर प्रोत्साहन मिलना चाहिए i   पवन तुमने बेहतर कोशिश की है i बधाई हो i

Comment by somesh kumar on October 19, 2014 at 10:31pm

व्यंग्य है या लघुकथा पर जो भी बहुत उम्दा स्तर की रचना है |

Comment by Dipak Mashal on October 19, 2014 at 1:47pm

बिना कथा वाली व्यंगात्मक टिप्पणियों को लघुकथा के नाम पर बार-बार दी जाने वाली शाबासी का ये चलन ओ बी ओ लघुकथाओं को गलत दिशा में ले जा रहा है, जानकारों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। ये वार्तालाप लघुकथा का हिस्सा तो हो सकते हैं और कुछेक बार लघुकथा भी लेकिन सिर्फ इस ढाँचे को ही लघुकथा कह देना कम से कम मेरे विचार से ठीक नहीं। क्षमा सहित। 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 19, 2014 at 10:43am

बहुत ही प्यारी लघुकथा. दिल को छू गई , आदरणीय पवन भाई. हार्दिक बधाई आपको

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