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विश्वविख्यात संस्था के दो स्वामी जी मेरे घर पधारे ।
मैने आवभगत के पश्चात प्रश्न किया ; "महाराज आपको स्वामी क्यों कहा जाता है? "
उन्होने कहा; "जो अपने मैं का अर्थात् अहं का स्वामी हो। जिसे संसार के छल-छद्म डिगा न सके। जो गुणातीत हो, भावातीत हो। जिसे आत्मज्ञान हो गया हो वह स्वामी कहलाता है।"
"ओह ! कितने पहुँचे हुये हैं साधु-महाराज हैं।तुरीयावस्था को प्राप्त ।" मैं श्रद्धा से नत-मस्तक ।

थोडे दिन बाद सुना कि उनमें से एक स्वामी जी ने नाराज़ होकर दूसरा आश्रम स्थापित कर लिया ।

डाॅ संध्या तिवारी

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by Shubhranshu Pandey on October 28, 2014 at 11:57am

चंचला का प्रभाव है. सारी विद्या धरी की धरी रह जाती हैं...

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 17, 2014 at 8:30pm

आज कल तो ऐसे स्वामियों की भरमार है देश में ..टी वी पर भी इनके कारनामे यदा कदा दिखाए जाते हैं अहम पर कौन विजय पा सका है ,सुन्दर लघुकथा |बधाई आपको |

Comment by विनय कुमार on October 16, 2014 at 12:15pm

अपने अहं पर विजय पाना सबके बस की बात नहीं | बहुत अच्छी लघुकथा..

Comment by Dr.sandhya tiwari on October 16, 2014 at 8:52am
Jitendraji aabhari hoon aapki ham jese naye logo ko padane or sarahane ke liye.
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 16, 2014 at 8:04am

हो सकता हो आत्मज्ञान में कुछ कमी रह गयी हो. बहुत बढ़िया विषय, बधाई आदरणीया संध्या जी

Comment by Dr.sandhya tiwari on October 15, 2014 at 7:31pm
आभार, सर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 15, 2014 at 6:32pm

तुरीयावस्था तिरोहित i  नया आश्रम साकार i

आज के तत्वज्ञ  का ऐसा ही आचार i    सादर i

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