For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“नमस्कार बाबू जी..! मुझे इस खसरे की नकल जल्द से जल्द निकलवाना है, यह रहा मेरा आवेदन”   रमेश ने सरकारी दफ्तर में फाइलों के बीच सिर दिए बाबू से कहा

“ अरे भाईसाहब..! जिसे देखो उसे जल्दी है. यहाँ इतना काम फैला पड़ा है और स्टाफ भी कम है, अपना आवेदन दे जाइए और आप १५ दिनों के बाद आइयेगा. आपको नकल मिल जायेगी. हाँ..!  अगर जरुरी काम हो ,जल्दी चाहिए तो थोड़ा सेवा-शुल्क कर दीजिये. कल ले जाना अपनी नकल” बाबू ने रमेश का आवेदन लेकर फ़ाइल कवर में रखते हुए कहा

“ अरे बाबू जी..! कैसी बातें कर रहे है आप..? यह रहा आपकी सेवा का शुल्क” रमेश ने मुस्कुराते हुए एक ५०० रु का नोट बाबूजी को देते हुए कहा

“ हाँ..! भाईसाहब, देखिये न जिन विभागों में बिलकुल काम नही है वहां भी यह सब. खैर..! यह लीजिये ‘सेना दिवस का फ्लेग’ रख लीजिये. मुझे आटे में नमक मिलाना ही अच्छा लगता है” बाबू ने रमेश से नोट लेकर, मुस्कुराते हुए ५० रु का फ्लेग देते हुए कहा

   

      जितेन्द्र ‘गीत’

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 660

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 5, 2014 at 9:52am

रिश्वत लेने के क्या क्या हथकंडे अपनाते हैं लोग हर विभाग का यही हाल है और हम लोग अपना काम निकलवाने के लिए कुछ भी कर गुजरते हैं तो अपराधी हम भी बराबर के हुए सजा दोनों के लिए है किन्तु कोई असर अभी भी दिखाई नहीं देता धंधा चल रहा है यूँ ही ,बहुत बहुत बधाई जितेन्द्र भैया |

Comment by Dr. Vijai Shanker on October 5, 2014 at 12:04am
प्रिय जीतेन्द्र जी ,एक सार्थक कथा के लिए बधाई। वास्तव में पब्लिक सीट पर बैठे कर्मचारियों को कोई भी ऐसे कार्य नहीं देने ही चाहिए जहां वे प्रत्यक्ष में कुछ और परोक्ष में कुछ और कारोबार करने लगें . बेईमानी को किसी भी रंग में रंगें स्वीकृति नहीं मिलनी चाहिए, ये एक प्रकार की दीमक है .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 4, 2014 at 10:16pm

आदरणीय बागी जी,

सर्वप्रथम लघुकथा पर आपने  अपना अनमोल समय दिया , आपका ह्रदय से आभारी हूँ. लघुकथा पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया व् लघुकथा में  कमी, मैं नतमस्तक होकर स्वीकार करता हूँ. मैं पूर्ण कोशिश करूँगा रचना को कसौटी पर खरा उतारने की. अपना स्नेह व् मार्गदर्शन हमेशा बनाये रखियेगा.

सादर!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 4, 2014 at 8:48pm

किसी ने रिश्वत मांगी और किसी ने उम्मीद से ज्यादा दिया, फ्लैग सामान्यतः सरकारी कर्मचारी डोनेसन देने के लिए लेते हैं या कार्यालय में एक टारगेट जैसा फ्लैग आता है कि इतना पैसा तो जाना ही है। खैर बात लघुकथा पर, लघुकथा क्या कहना चाहती है या क्या सन्देश देना चाहती है।  क्या यह कि कोई रिश्वत माँगे तो देकर काम करवा लो, यदि ऐसा तो   ……जीतेन्द्र जी मुझे यह लघुकथा अच्छी नहीं लगी। 

सादर। 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
10 hours ago
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service