For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैंने हयात सारी गुजारी गुलों के साथ

221   2121   1221    212  

 

जल जल के सारी रात यूं मैंने लिखी ग़ज़ल

दर दर की ख़ाक छान ली तब है मिली ग़ज़ल

 

 मैंने हयात सारी गुजारी गुलों के साथ

पाकर शबाब गुल का ही ऐसे खिली ग़ज़ल

 

मदमस्त शाम साकी सुराही भी जाम भी

हल्का सा जब सुरूर चढ़ा तब बनी ग़ज़ल

 

शबनम कभी बनी तो है शोला कभी बनी

खारों सी तेज चुभती कभी गुल कली ग़ज़ल

 

चंदा की चांदनी सी भी सूरज कि किरणों सी

हर रोज पैकरों में नए है ढली ग़ज़ल

 

चलती ही जा रही है जमाने से आज तक

मिर्जा तकी के साथ कभी थी चली ग़ज़ल 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 731

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:55pm

आदरणीय गिरिराज भाईसाब ..बड़े दिनों बाद काफिआ की गलती से मुक्ति मिली ..बस आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:54pm

आदरणीय हरिवल्लभ जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:54pm

आदरणीय जीतेएन्द्र जी ..आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:53pm

आदरणीय करून सर ..आप अग्रजो का स्नेह और आशीर्वाद यूं ही मिलता रहे सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:51pm

आदरणीय गोपाल सर ..बस आपका आशीर्वाद यूं ही मिलता रहे सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:50pm

आदरणीय श्याम नारयन जी .रचना पर आपकी प्रतिक्रिया मुझे हौसला देती है ..हार्दिक धन्यवाद के साथ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on September 22, 2014 at 8:49pm

आदरणीय नरेन्द्र जी आपकी प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2014 at 8:38pm

आदरणीय आशुतोष भाई , बढ़िया ग़ज़ल कही है , सभी अश आर बढ़िया हुए हैं , आपको दिली बधाइयाँ |

Comment by harivallabh sharma on September 21, 2014 at 1:21pm

बहुत उम्दा ग़ज़ल हुयी है आदरणीय..

मैंने हयात सारी गुजारी गुलों के साथ

पाकर शबाब गुल का ही ऐसे खिली ग़ज़ल...सुन्दर शेर बधाई आपको.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 21, 2014 at 1:17pm

बेहद खुबसूरत. हर शे'र तारीफ़ के काबिल, दिली बधाई आपको आदरणीय डा. आशुतोष जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"2122 1212 22 बात करते नहीं हुआ क्या है हमसे बोलो हुई ख़ता क्या है 1 मूसलाधार आज बारिश है बादलों से…"
12 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"खुद को चाहा तो जग बुरा क्या है ये बुरा है  तो  फिर  भला क्या है।१। * इस सियासत को…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"सादर अभिवादन, आदरणीय।"
2 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"ग़ज़ल~2122 1212 22/112 इस तकल्लुफ़ में अब रखा क्या है हाल-ए-दिल कह दे सोचता क्या है ये झिझक कैसी ये…"
6 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"स्वागतम"
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service