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सबकुछ जाने सबकुछ समझे  

पागल ये फिर भी धुन है

औचक टूट गए सपनों की

उचटी आँखों की धुन है |

 

इस धुन की ना जीभ सलामत

ना इस धुन के होठ सलामत   

लँगड़े, बहरे, अंधे मन की  

व्याकुल ये कैसी धुन है |  

 

खेल-खिलौने टूटे-फूटे   

भरे पोटली चिथड़े-पुथड़े

अत्तल-पत्तल बाँह दबाए

खोले-बाँधे की धुन है |

 

क्या खोया-पाना, ना पाना  

अता-पता न कोई ठिकाना

भरे शहर की अटरी-पटरी  

पर गिरती-पड़ती धुन है |

 

फूटा लोटा, टूटी डोरी  

भठे कुएँ पर खड़ा बटोही

बेसुध कंकड़-पत्थर भरती   

ये कैसी प्यासी धुन है |

 

किए-धरे का लेखा-जोखा

झाड़ों ने कब तौला-देखा  

काँटों में घायल पंखों की  

ज्यों फड़फड़ करती धुन है |

 

ऐसा होता, वैसा होता   

तो आज समय कैसा होता   

बीती बातों को धुनने की

बेमतलब गुनती धुन है |

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

-- संतलाल करुण       

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Comment

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Comment by Santlal Karun on September 7, 2014 at 3:01pm

आदरणीया मंजरी मैडम,

गीत-रचना पर  प्रशंसात्मक प्रतिक्रिया  के लिए सहृदय आभार !

Comment by Santlal Karun on September 7, 2014 at 2:59pm

आदरणीय श्याम नरायन वर्मा जी,

गीत पर प्रशंसात्मक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on September 7, 2014 at 2:56pm

आदरणीय जितेन्द्र गीत जी,

गीत की सराहना के लिए हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on September 7, 2014 at 2:55pm

आदरणीया राकेश कुमारी जी,

गीत  की प्रशंसा के लिए सहृदय आभार !

Comment by Santlal Karun on September 7, 2014 at 2:53pm

आदरणीय जे.एल. सिंह जी,

गीत पर प्रेरक उद्गार के प्रति हार्दिक आभार !

Comment by Santlal Karun on September 7, 2014 at 2:51pm

आदरणीय डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी,

"धुन ही होती है  धुन जैसी

धुन में बेसुध  तन मन है I

धुन की धुन मे सब मतवाले   

धुन ही कवि का जीवन है I" ... गीत पर काव्यमयी प्रेरक प्रतिक्रिया के लिए सहृदय आभार !

Comment by MAHIMA SHREE on September 5, 2014 at 4:13pm

ऐसा होता, वैसा होता   

तो आज समय कैसा होता   

बीती बातों को धुनने की

बेमतलब गुनती धुन है |वाह  सच तो है ...हार्दिक बधाई आदरणीय संतलाल जी सादर 

 

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 5, 2014 at 12:08pm
" ऐसा होता, वैसा होता
तो आज समय कैसा होता
बीती बातों को धुनने की
बेमतलब गुनती धुन है
बहुत खूब , बधाई .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 5, 2014 at 11:01am

आदरणीय संत लाल जी , बहुत सुन्दर , गहरे आध्यात्मिक दर्शन -भावों को समेटे आपके गीत के लिए बधाइयाँ |

Comment by vandana on September 4, 2014 at 6:56am

बहुत सुन्दर रचना आदरणीय 

कृपया ध्यान दे...

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