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मिले है आज हम दोनो हसीं इक शाम हो जाये

कसम दो तोड़ तुम उसकी चलो इक जाम हो जाये

पड़ा सूखा मरे भ्‍ूाखो नहीं कोई हमें पूछे

कही ऐसा न हो यारो कि कल्‍लेआम हो जाये

नहीं रखते कभ्‍ाी धीरज किसी भी काम में यारो

बचा लो नाम तुम मेरा न वो बदनाम हो जाये

तुम्‍हारे प्‍यार में जानम मरेगें डूब कर सुन लो

मरा पागल दिवाना है न चरचा आम हो जाये

मिलेगा अब नहीं जीवन मिला इक बार जो तुमको

करो कुछ काम अब ऐसा तुम्‍हारा नाम हो जाये

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 22, 2014 at 2:58pm

बहर को आपने साध लिया भाई !  वाह-वाह !! 

यह कम बड़ी बात नहीं है. बहुत खूब !

अब कहन पर और उसकी प्रस्तुति पर भी प्रयास करें. 

जैसे,

यह मिसरा - कसम दो तोड़ तुम उसकी चलो इक जाम हो जाये 

इसे यों लिखें - कसम तुम तोड़ दो उसकी, चलो इक जाम हो जाये

कौन मिसरा सीधा और स्पष्ट है ? 

अर्थ पर अभी नहीं जा रहे हम.

शुभ-शुभ

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 22, 2014 at 2:17pm

आदरणीय अखंड जी ..इस सुंदर भावों से सजी बेहतरीन ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by Santlal Karun on August 20, 2014 at 6:15pm

आदरणीय गहमरी जी,

भावपूर्ण ग़ज़ल, हार्दिक साधुवाद एवं सद्भावनाएँ ! --

"मिलेगा अब नहीं जीवन मिला इक बार जो तुमको

करो कुछ काम अब ऐसा तुम्‍हारा नाम हो जाये"

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 20, 2014 at 2:14pm

गह्मरी  जी

 

बहुत पुरअसर गजल i  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 20, 2014 at 9:59am

आदरणीय अखंड भाई , खूब सूरत ग़ज़ल के लिए बधाई |

कृपया ध्यान दे...

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