For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

‘ अकड़न ’  

*********

जहाँ कहीं भी अकड़न है

समझ लेने दीजिये उसे

अगर वो ये सोचती है कि, दुनिया है , तो वो है

तो ये बात सही भी हो सकती है

और अगर वो ये सोचती है कि , वो है, इसलिए दुनिया है

तो फिर उसे देखना चाहिए पीछे मुड़कर

कि, कोई भी नहीं बचा है , ऐसी सोच रखने वालों में से

और दुनिया आज भी है ,

वैसे तो तुम्हारा होना बस तुम्हारा होना ही है , इससे ज्यादा कुछ नहीं

बस एक घटना घटी और तुम हो गए

एक और घटेगी , तुम नहीं रहोगे 

तो पियो सरलता

आने दो तरलता , और बह जाने दो

फैल जाने दो ,

ता कि , दुनिया की पूरी सतह हो जाए आच्छादित

क्यों कि सरलता और तरलता ही फ़ैल सकती है, असीम

और हो जाने दो सार्थक

अपने होने की उस एक नगण्य घटना को ||

*****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 611

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by ram shiromani pathak on August 14, 2014 at 12:42pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय गिरिराज जी ...........  सादर 

Comment by savitamishra on August 14, 2014 at 10:40am

अति सुन्दर रचना.....सादर नमस्ते भैया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 14, 2014 at 8:15am

अकडन में विस्तार की संभावनाएं कहाँ...... अनंत विस्तार के लिए तो सरलता चाहिए तरलता चाहिए..... वाह बहुत खूबसूरत 

अपने होने के उस एक नगण्य घटना को..................शायद यहाँ की किया जाना चाहिए 

इस सुन्दर तार्किक प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 13, 2014 at 10:13pm

आपने बिलकुल सही कहा आदरणीय गिरिराज जी. तरलता और सरलता से जीवन को जिया जा सकता है. बहुत -२ बधाई आपको

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 13, 2014 at 8:50pm

और हो जाने दो सार्थक

अपने होने के उस एक नगण्य घटना को ||

 

मित्र - सुन्दर भाव निरूपण  हेतु बधाई i

Comment by Meena Pathak on August 13, 2014 at 2:20pm

अति सुन्दर रचना हेतु सादर बधाई स्वीकारें आदरणीय गिरिराज जी 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 13, 2014 at 11:57am
वैसे दुनियां गज़ब की सरलता -तरलता है, ये तो बेकार के वे लोग हैं जो किसी लायक नहीं हैं कि कुछ दे सकें दुनिया को और ठेकेदार बने बैठे हैं हर जगह ताकि मौज करते रहें और दूसरों के लिए दुनियाँ और जिंदगी दोनों कठोर करते रहें .
कुछ नया है , अच्छा है , बहुत बहुत बधाई आ o गिरिराज जी .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service