For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कोई तो मकसद होगा दुनियाँ में हमारा -डा० विजय शंकर

कोई तो मकसद होगा दुनियाँ में हमारा -डा० विजय शंकर

लोगों ने तेरी दुनियाँ को
क्या से क्या बना दिया
हम तुझे ही बनाते
और तराशते रह गए ॥

लोगों ने तेरी दुनियाँ को
गुल-गुलिस्तां बना दिया
हम जो फूल मिले वो भी
तुझे ही चढ़ाते रह गए ॥

तुमने हमें क्यों भेजा था
इस दुनियाँ जहाँन में
वो सब छोड़ हम तुझे
ही तलाशते रह गए ॥

कोई तो मकसद होगा
दुनियाँ में हमारा भी
हम उसको छोड़ तुझको ही
मकसद समझते रह गए ||

तेरी जो उम्मीदें रही होंगी हमसे
उनको तो हमने जाना नहीं
हर बात पे हम तेरी ही
उम्मीदों पे बैठे रह गए ||

लगा बनाने वाले ने हमें
कुछ काम दिए थे ,जिन्हें
छोड़ अपने सारे काम हम
उसी पे छोड़ बैठे रह गए ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 420

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 12, 2014 at 10:48pm
आदरणीय लक्षमण धामी जी , बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2014 at 11:29am

आ० भाई विजय शंकर जी , इस बेहतरीन और सारगर्भित रचना को साझा करने के लिए बहुत बहुत बधाई .

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 12, 2014 at 10:47am
प्रिय जीतेन्द्र जी , आपकी बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 12, 2014 at 9:44am

बहुत ही सुंदर रचना साझा की आपने, शायद आजकल इंसानों के वजूद बस पढने को ही मिलते हैं. बहुत-२ बधाई आदरणीय डा.विजय जी

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 11, 2014 at 12:46pm
आदरणीय वेदिका जी , बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .
Comment by वेदिका on August 11, 2014 at 11:01am
लगा बनाने वाले ने हमें
कुछ काम दिए थे ,जिन्हें
छोड़ अपने सारे काम हम
उसी पे छोड़ बैठे रह गए // यह बंद पुख्ता नज़र आया।
हार्दिक बधाई लीजिये आदरणीय!
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 11, 2014 at 10:47am
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , रचना को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाव।
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 11, 2014 at 10:44am
आदरणीय डॉ o गोपाल नरायन जी,
आप्पकी नज़र पैनी है। मेरा संकेत सिर्फ हमारी वजेहात का ही नहीं है बल्कि हमारे दायित्वों का भी है।
रचना को परखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 11, 2014 at 10:38am

इंसानों के होने के कारणों को साझा करती आपकी जीवन दर्शन शास्त्रीय रचना के लिए आपको  बधाइयाँ , आदरणीय विजय भाई |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 10, 2014 at 1:15pm

विजय जी 

इंसानी वजूद की वजेहात का प्रश्न  शाश्वत है i आपकी चिंता बिलकुल वाजिब है -

 

तेरी जो उम्मीदें रही होंगी हमसे
उनको तो हमने जाना नहीं
हर बात पे हम तेरी ही
उम्मीदों पे बैठे रह गए ||

लगा बनाने वाले ने हमें
कुछ काम दिए थे ,जिन्हें
छोड़ अपने सारे काम हम
उसी पे छोड़ बैठे रह गए ॥

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"आदरणीय  उस्मानी जी डायरी शैली में परिंदों से जुड़े कुछ रोचक अनुभव आपने शाब्दिक किये…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
Wednesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service