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जब बूंदें रिमझिम गिरती हैं

जब बूंदें रिमझिम गिरती हैं
कुछ स्वरलहरियां सी बुनती हैं
हरियाली के इस मौसम में भी
बस फीका सा रह जाता है मन
भीगा भीगा सा ये मौसम.....
भीगी सी वादी और समां
प्यासी धरती हो दृवित चले
पर प्यासा सा रह जाता है मन
रिमझिम बारिश में घंटों रहना
राहों में बस यूं ही संग संग चलना
तेरी उन सारी बातों को

फिर फिर से दोहराता है मन.
मन तुमसे मिलने को तरसे
बूंदों संग आंखें कितना बरसें
इन दोनों की इस बारिश मे
बस रीता सा रह जाता है मन.

.

.......प्रियंका

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment

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Comment by Harash Mahajan on July 23, 2015 at 3:09pm

प्रियंका जी बहुत ही सुन्दर  भाव ...आपके गीतों का उपवन में शब्दों की अच्छी रिमझिम है..बधाई !!

Comment by vijay nikore on August 11, 2014 at 1:22pm

अति सुन्दर भावनाएँ । बधाई।

Comment by Priyanka Pandey on August 11, 2014 at 7:48am

समस्त मित्रों का हर्दय से आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 10, 2014 at 1:54am

भावुक शाब्दिकता का अपना जगत होता है. 

सादर

Comment by सूबे सिंह सुजान on August 8, 2014 at 11:56pm

रिमझिम को व्यक्त करना बहुत अच्छा

Comment by Neeraj Nishchal on August 8, 2014 at 11:17pm
बहुत सुन्दर प्रियंका जी |
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 8, 2014 at 4:14pm

प्रियंका जी

आपकी मृदु भावनाओ का स्वागत -- i

कृपया ध्यान दे...

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