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लघुकथा : बदलाव (गणेश जी बागी)

                                निगरानी टीम रघुआ को गिरफ्तार कर अपने साथ ले गई, दरअसल वो सब्जी बाज़ार मे अवैध बिजली वितरण का धंधा स्थानीय कर्मचारियों और अधिकारियों की मिलीभगत से चला रहा था और प्रतिदिन प्रति बल्ब २० रुपये की वसूली सब्जी दुकानदारों से करता था.

                                लेकिन दूसरे ही दिन वो पुलिस हिरासत से वापस आ गया. कुछ विशेष नही बदला, सब कुछ पहले की तरह ही चलने लगा, बस अब बिजली किराया प्रतिदिन ३० रुपया हो गया था.

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट => लघुकथा : महाचोर

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 5, 2014 at 8:40pm

आदरणीय

समाज का आईना है यह लघु कथा  i चोरो का कुछ नहीं होता i भुगतना समाज को ही पड़ता है  i बड़ी सड़ांध है सिस्टम में  i  सादर i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 5, 2014 at 7:29pm

समाज की सोच में ही दुर्गंध बस गई है. व्यावहारिक जीवन में व्याप गये अनगढ़पन को शब्द देने के लिए बहुत-बहुत बधाई, गणेशभाई.

Comment by Meena Pathak on August 5, 2014 at 5:14pm

यथार्थ बयान करती सुन्दर लघुकथा हेतु बधाई आ० बागी जी | सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 5, 2014 at 4:21pm
ठीक तो है नयी व्यवस्था लागू करने के लिए एक दिन का अंतराल तो देना ही पड़ता है . यथार्थ को स्वीकार करो . लघु कथा के लिए बधाई .

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