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गंगा की मछली (लघु कथा) // शुभ्रांशु पाण्डेय

“खाना… पानी सब देने के बाद भी जब देखो मुँह उतरा ही रहता है.” तुनकते हुये बहु ने सास के सामने टेबल पर खाने की प्लेट पटक दी...

सास ने अपने बेटे को आंखो की पनियायी कोर से देखा....

वो तो तन्मयता से टीवी पर गंगा में आक्सीजन की कमी से मर रही मछलियों के बारे मे न्यूज़ देख रहा था.

*******************

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by MAHIMA SHREE on August 3, 2014 at 3:46pm

बहुत खूब ..हार्दिक बधाई सजीव चित्रण के लिए सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 3, 2014 at 12:37am

बहुत अच्छी लघुकथा. बहुत ही महीन चित्रण. बहुत -२ बधाई आपको आदरणीय शुभ्रांशु जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on August 2, 2014 at 8:44pm

अच्छी लघुकथा है शुभ्रांशु जी, दिली दाद कुबूल कीजिए

Comment by Shubhranshu Pandey on August 2, 2014 at 4:47pm

आदरणीय गुमनाम जी कथा पर समय देने के लिये घन्यवाद.

Comment by Shubhranshu Pandey on August 2, 2014 at 4:27pm

 आदरणीया प्राची जी, कथा पर अपने विचार देने के लिये घन्यवाद. 

Comment by Shubhranshu Pandey on August 2, 2014 at 4:24pm

धन्यवाद आदरणीय विनय जी, कथा पर आपने समय दिया.

Comment by Shubhranshu Pandey on August 2, 2014 at 4:24pm

आदरणीय रवि प्रभाकर जी. 

कथा पर समय देने के लिये घन्यवाद.

ये ओबीओ मंच और आप जैसे गुनी जन का सानिध्य है जिससे कुछ लिखने की हिमाकत करता हूँ. आप लोगों को पसंद आता है इसके लिये बहुत बहुत धन्यवाद. 

सादर.

Comment by Shubhranshu Pandey on August 2, 2014 at 4:05pm

आदरणीय डा गोपाल नारायण जी, 

कथा पर विचार देने के लिये घन्यवाद.

सादर.

 

Comment by Meena Pathak on August 2, 2014 at 3:24pm

बहुत गहरी बात कही आपने अपनी लघुकथा के माध्यम से ...बहुत बहुत बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 1, 2014 at 9:20pm

लघुकथा अपनी बात कहने में सफल है कुछ ही पंक्तियाँ बहुत कुछ समझा गई ,दिखा गई .इस सार्थक लघु कथा के लिए ढेरों बधाईयाँ आपको शुभ्रांशु जी 

कृपया ध्यान दे...

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