For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दादी, हामिद और ईद (लघुकथा) // --सौरभ

हामिद अब बड़ा हो गया है. अच्छा कमाता है. ग़ल्फ़ में है न आजकल !

इस बार की ईद में हामिद वहीं से ’फूड-प्रोसेसर’ ले आया है, कुछ और बुढिया गयी अपनी दादी अमीना के लिए !

 

ममता में अघायी पगली की दोनों आँखें रह-रह कर गंगा-जमुना हुई जा रही हैं. बार-बार आशीषों से नवाज़ रही है बुढिया. अमीना को आजभी वो ईद खूब याद है जब हामिद उसके लिए ईदग़ाह के मेले से चिमटा मोल ले आया था. हामिद का वो चिमटा आज भी उसकी ’जान’ है.
".. कितना खयाल रखता है हामिद ! .. अब उसे रसोई के ’बखत’ जियादा जूझना नहीं पड़ेगा.. जब हामिद वापस चला जायेगा, अपनी बहुरिया के साथ, अपने बेटे के साथ.. "
************************
(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 2773

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on July 30, 2014 at 1:32pm

आदरणीय सौरभ जी

प्रेमचंद के कालजयी चरित्र  को आपने आधुनिक संदर्भो में रूपायित किया  i हम बचपन से जब अपने वर्तमान की तुलना करते है तो हमें भी यही लगता है बचपन वस्तुतः कितना निश्छल होता है  i हम वय  की परिपक्वता पाकर सयाने और धूर्त हो जाते है i मेरे इस कथन का आपकी संवेदंशील लघुकथा  से कोई संबंध  नहीं है i पर आपने हामिद का चयनकर  इसकथा को अधिकाधिक मार्मिक बना दिया है i मै तो बस यही कहूंगा -- हामिद सचमुच बड़ा हो गया है  i पर  मै अमीना को भी सलाम करता हूँ  i   साथ ही आपकी कलम को भी ----i सादर i

Comment by harivallabh sharma on July 30, 2014 at 12:56pm

समय के अनुरूप चेतनाएं बदलती हैं...हामिद अब आधुनिक युग में प्रवेश कर नए मित्र  नवीन वातावरण  में प्रविष्ट हुआ है..जब उसके लिए चिमटा खरीदना भी भारी था ..जो बच्चे ने अपना मन मार कर कुर्वान किये थे..उसकी तुलना में फ़ूड प्रोसेसर कुछ नहीं..इस यथार्थ को दादी अमीना भी जान  चुकी है...बहुत सामयिक परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करती श्रेष्ठ लघु कथा ..आदरणीय.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 30, 2014 at 12:48pm

आदरणीय आशुतोषभाई, आपकी स्पष्टवादिता ने मुझे ही हिला कर रख दिया है. मेरी आँखें नम हैं.. ना ना, आपने मुझे पूरा रुला दिया, मित्रवर. जिस तथ्य को आपने यों बेलाग कहा है, वस्तुतः यही इस कथा का हेतु है.

आज अर्थोपार्जन में लगे बहुसंख्यक तथाकथित उच्च या मध्यम मध्यमवर्गीय (एकल) परिवारों की पहली पीढ़ी या अधिक-से-अधिक दूसरी पीढ़ी कमोबेश उसी परिवेश से आयी है, जिस परिवेश में इस कथा का नायक हामिद हुआ करता था. पारिवारिक रूप से तनिक आगे-पीछे हो भी सकता है, परन्तु सामाजिक रूप से बहुसंख्यकों का ठीक वही परिवेश रहा है. और, विडम्बना देखिये कि आज ऐसे बहुसंख्यक नायकों की दादियाँ, माएँ, चाचियाँ, पिता-दादा-स्नेहीजन दीर्घ प्रतीक्षापलों में निस्संग का एकाकी जीवन गुजारते हुए अपने उन लालों तथा उनके नन्हें छौनों के संग उनकी सहधर्मिणियों को कुछ दिन, कुछ हफ़्तों या कुछ महीनों के लिए अपने बीच पा निहाल हो उठने को विवश हैं, जबतक कि उनके लिए तुलसीपत्र और गंगाजल की घड़ी न आ जाये.

इस कथा के भावपक्ष से व्यक्तिगत तौर पर स्वयं को उकीर्ण करने के लिए सादर आभार.

Comment by coontee mukerji on July 30, 2014 at 12:43pm

समय कितना बदल गया है.....प्रेमचंद की ईदगाह से लेकर सौरभ जी की लघुकथा.. कितने लम्बे समय को दर्शाता है....... बात सच है आज भी तो गाँवों कस्बों में हामिद और अमीना बसे हुए है.... अगर कुछ बदला है तो सिर्फ़ चिमटा.....बहुत ही रोचक ढंग से एक अत्यन्त संवेदनशील घटना को देशकाल के अंतरगत दर्शाया गया है........साधुवाद सौरभ जी.

Comment by Ravi Prabhakar on July 30, 2014 at 12:23pm

श्रद्धेय सौरभ भाई जी,
आपकी लघुकथा पर सुधिजन बहुत कुछ कह चुके है। मैं तो केवल इतना ही कहना चाहूंगा कि अपने पहले ही टेस्ट मैच में आपने दोहरा शतक जड़ दिया है। यदि आज मुंशी प्रेमचंद जी जिंदा होते तो उन्हे भी आपकी रचना पर बहुत गर्व महसूस होता। बहुत बहुत शुभकामनाएं।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 30, 2014 at 12:21pm

इस प्रस्तुति का कथ्य-संप्रेषण, शब्द-संयोजन, बिम्बात्मक इंगित, शिल्पगत प्रामाणिकता तथा कथासूत्र के आलोक में आप द्वारा हुआ अनुमोदन मेरे लिए कितना मायने रखता है, इसका भान आपको भी है, आदरणीय योगराजभाईसाहब.

मैं आपको कतिपय साहित्यिक-विधाओं में सिद्धहस्त मानता हूँ. उनमें लघुकथा की विधा सर्वोपरि है. आपने अपनी इस टिप्पणी के माध्यम से इस तथ्य को जिस स्पष्टता से रेखांकित किया है, वह मेरी लघुकथा को मात्र अनुमोदित करने से आगे, वस्तुतः लघुकथा की विधा को व्याख्यायित करता है.
कथासूत्र की बारीकियों तथा कथा-विन्यास के ताने-बाने को जिस गुरुतर सहजता से आपने शब्दबद्ध किया है, आदरणीय, वह मुझ जैसों के लिए मार्गदर्शन है. यह बात मेरे लिए और भी प्रासंगिक हो जाती है कि यह प्रस्तुति  इस विधा में मेरी पहली रचना है.

आपको मेरा प्रयास तार्किक, सार्थक तथा रुचिकर लगा है, आदरणीय, मेरा उत्साह दूना हुआ है. इस कथा के सापेक्ष इस सम्मान तथा विन्दुवत मार्गदर्शन के लिए सादर धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ.  
सादर

Comment by Dr. Vijai Shanker on July 30, 2014 at 12:21pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,
आपकी लघु कथा बहुत अपील करने वाली तो है ही , अपने आप में एक नवीन तरह का प्रयोग भी है जो बहुत ही सराहनीय है . लघु कथा के प्रारंभिक बिंदु के विषय में मैं आपसे पूरी तरह से सहमत हूँ पर ये दृष्टि हैं न , वह विविधताओं की ओर चली ही जाती है , शायद यह उसका स्वाभाविक गुण है .
पुनः एक बार आपको बहुत बहुत बधाई . आपके इस नवप्रयोग का तेजी से अनुसरण होगा , देखियेगा. सादर .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 30, 2014 at 12:06pm

भाई जितेन्द्रजी, आपका अनुमोदन मेरे लिए भी मायने रखता है. हार्दिक धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 30, 2014 at 12:05pm

//ये तो अच्छा हुआ के फ़ूड प्रोसेसर वो खुद लाके दिया ईद में , वहीं से भिजवा ही देता तो क्या कर लेते , एक ख़त लिख देता इस ईद में नहीं आ पा रहा हूँ | अभी भी पुराने हामिद में कुछ पुरानी बातें बाकी हैं |//

यह अवश्य है कि उपरोक्त पंक्तियों का लेखक / टिप्पणीकार प्रस्तुत लघुकथा के रेशे-रेशे से भावमय हुआ है. आदरणीय गिरिराजभाई, आपने स्पष्ट शब्दों में वो बात कही है जो इस लघुकथा के ’होने’ का अर्थ बताती है. हृदयतल से हार्दिक धन्यवाद आदरणीय.

आपको एक सूचना दूँ, कि मेरी यह लघुकथा इस विधा में प्रस्तुत हुई कोई पहली रचना है. अतः आप द्वारा कथा के मर्म को अभिव्यक्त करना मुझे भी आश्वस्त कर रहा है.

सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 30, 2014 at 12:00pm

आदरणीया राजेशकुमारीजी, आपने प्रस्तुत कथा के मर्म को शब्दबद्ध कर मुझे असीम सुख दिया है. आपके अनुमोदन और इस उत्साहवर्द्धन के लिए बहुत-बहुत आभारी हूँ.

सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
49 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
52 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
55 minutes ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"अनुज बृजेश , ग़ज़ल की सराहना और उत्साह वर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार "
1 hour ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
8 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service