For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिनांक 22 जून की शाम इलाहाबाद के अदबघर, करेली में अंजुमन के सौजन्य से आयोजित तरही-मुशायरे में मेरी प्रस्तुति तथा कुछ अन्य शेर --
2122   2122   212 

यदि सुशासित देश-सूबा चाहिये..
शाह क्या जल्लाद होना चाहिये !?

फ़ुरसतों का दौर कैसा चाहिये.. ?
वक्त अलसाया.. उनींदा चाहिये !

रात है, आवारग़ी है..   खूब है.. 
कब कहा हमने.. ठिकाना चाहिये ?

इश्क़ है गर डूबना.. तो पास जा..
डूबने वालों को दरया चाहिये

नाम इक उड़ता हुआ फिर आ गया  
होंठ पर फूलों का गमला चाहिये.. !!

वक़्त क्या.. कर दूँ निछावर ज़िन्दग़ी
पर तुम्हें तो सिर्फ़ कंधा चाहिये !

धूप से हलकान सूरज भी दिखा

अब उसे लहजा बदलना चाहिये ॥

हाँ, गगन के तो घनेरे रंग हैं
किन्तु चिड़िया को बसेरा चाहिये ॥

दुख मेरा है एक बच्चे की तरह
हर समय ’सौरभ’ खिलौना चाहिये ॥
*********************

--सौरभ

*********************

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1470

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 24, 2014 at 7:36pm

हार्दिक धन्यवाद आदरणीय विजयजी.

Comment by विजय मिश्र on June 24, 2014 at 5:50pm
सुंदर बहुत सुंदर ,बधाई सौरभजी |

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 24, 2014 at 5:08pm

प्रस्तुति को मान देने के लिए सादर धन्यवाद आदरणीया सावित्रीजी.. .

Comment by Savitri Rathore on June 24, 2014 at 4:52pm

आदरणीय सौरभ जी,आपकी ग़ज़ल का हर शेर अपने आप में एक से बढ़कर एक है पर ये दो शेर
यदि सुशासित देश-सूबा चाहिये..
शाह क्या जल्लाद होना चाहिये !?
दुख मेरा है एक बच्चे की तरह
हर समय ’सौरभ’ खिलौना चाहिये ॥         लाजवाब हैं। बधाई सुन्दर ग़ज़ल रचना हेतु !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 24, 2014 at 11:42am

आदरणीया कुन्तीजी,
आपका अनुमोदन सिर-आँखों पर.. .

// मारते हैं भी पर हाथ में तलवार नहीं....एफ.आई.आर  दर्ज़ कराएँ भी तो कैसे.? //

ज़रूरत ही नहीं है, आदरणीया. जो करना है उसी अदृश्य तलवार को ही करना है.. वही करेगी. या, हवा में भँज कर रह जाय.. या, गर्दन पर लग जाय..
हम सभी तो निमित्त मात्र हैं .. ! .. :-))))))

Comment by coontee mukerji on June 24, 2014 at 1:32am

यदि सुशासित देश-सूबा चाहिये..
शाह क्या जल्लाद होना चाहिये !?...सौरभ जी, आपने पहले शेर में ही सबको धराशायी कर दिया....

.नाम इक उड़ता हुआ फिर आ गया  
होंठ पर फूलों का गमला चाहिये.. !!.....और क्या कहें.....होठों पर गमला.....क्या बात है आदरणीय....मारते हैं भी पर हाथ में तलवार नहीं....एफ. आई.आर  दर्ज़ कराएँ भी तो कैसे.?..

सादर

Comment by Vindu Babu on June 23, 2014 at 9:24pm
:):)
जी आदरणीय।
मैंअभी देखती हूँ..उत्तर के रूप में आपने इतना महत्वपूर्ण लेख प्रस्तुत किया,इसके लिए आपका बहुत शुक्रिया।
सादर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 23, 2014 at 6:51pm

//लेकिन एक जिज्ञासा और उठ खडी हुयी कि यदि गजल में तखल्लुस ही न होतब क्या आख़िरी शेर मतला कहलायेगा //

जी नहीं.. बिना तखल्लुस का आखिरी शेर मक्ता नहीं कहलाता..

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 23, 2014 at 6:26pm

सौरभ जी /सादर प्रणाम

मै त्रुटिवश मतला को मिसरा  लिख गया i इसका खेद है  i आपने मक्ता की जो जानकारी दी i वह मुझे वस्तुतः पता नहीं थी i इसके लिए धन्यवाद  i लेकिन एक जिज्ञासा और उठ खडी हुयी कि यदि गजल में तखल्लुस ही न होतब क्या आख़िरी शेर मतला कहलायेगा i आदरणीय?


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 23, 2014 at 6:04pm

आदरणीया विन्दु बाबू,
आपने ग़ज़ल प्रयास को मान दिया इसके लिए हार्दिक धन्यवाद.

लेकिन आपकी यह टिप्पणी दो-एक और स्लुइस गेट के खुलने का कारण बन रही है. .. :-))

पहली तो ये बात कि आप पंक्चुएशन चिह्नों के विलुप्त होने की बात करती हैं और फिर मतले के सानी में एक साथ दो चिह्नों के होने को लेकर प्रश्न करती है. ये दोनों तो दो बातें हुई न ? एक तौर पर, टिप्पणी के माध्यम से आपके ये प्रश्न इस पोस्ट की सीमा के बाहर के हैं. आपकी टिप्पणी के आलोक में मैंने एक छोटा सा आलेख प्रस्तुत किया है. उसका लिंक दे रहा हूँ.

http://www.openbooksonline.com/group/chhand/forum/topics/5170231:To...

इस लिंक पर उपलब्ध आलेख आपकी जिज्ञासा को संतुष्ट कर पाया तो मुझे भी संतोष होगा.
वहाँ आपके विचारों का स्वागत है.  

शुभ-शुभ

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
2 hours ago
anwar suhail updated their profile
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Friday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Nov 30
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service