For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

महज पाना किसी को भी मुहब्बत तो नहीं होती - ग़ज़ल

*******

1222 1222 1222 1222

*******

हुआ    जाता    नहीं   बच्चा   कभी   यारो   मचलने   से

नहीं    सूरत    बदलती   है   कभी   दरपन   बदलने   से

***

जला  ले  खुद  को  दीपक  सा  उजाला   हो   ही  जायेगा

मना   करने   लगे   तुझको  अगर  सूरज  निकलने  से

***

हमारी   सादगी   है   ये   भरोसा   फिर   जो   करते   हैं

कभी  तो  बाज  आजा  तू  सियासत  हमको  छलने  से

***

बता  बदनाम  करता  क्यों  पतित  है  बोल अब मुझको

न  रोका  जब  कभी  तूने   यहाँ   मुझको  फिसलने  से

***

पता   है   तू   भुजंगों  में   तेरी   फितरत   विषैली   है

मैं   चंदन   हूँ  न   बदलूंगा   जहर   तेरे   उगलने   से

***

मुझे  तो  घोर  तम  देता,  नहीं तुझ  सी  समझ  मेरी

उजाला  तुझको  लगता  हो भले  ही  घर  के  जलने से

***

महज  पाना  किसी   को  भी  मुहब्बत  तो  नहीं  होती

समझ मत हमसफर मुझको ‘मुसाफिर’ साथ चलने से

***

रचना- 13 दिसम्बर 2005

***

रचना मौलिक व अप्रकाशित

लक्ष्मण धामी ‘मुसाफिर’

Views: 545

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 20, 2014 at 9:37am

आ० कल्पना दी , ग़ज़ल की प्रशंसा कर उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on June 19, 2014 at 10:55pm

सुंदर गजल के लिए आपको बहुत बहुत बधाई आदरणीय लक्ष्मण जी

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 19, 2014 at 12:29pm

आदरणीय भाई विजय जी , आपको ग़ज़ल अच्छी लगी यह मेरे लिए अतिरिक्त पारिश्रमिक है आपका आशीष ही निरंतर बेहतर लिखने का प्रयास को प्रेरित करता है . इसके लिए हार्दिक आभार .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 19, 2014 at 12:25pm

आदरणीय भाई गिरिराज जी ग़ज़ल को इतना सम्मान देने के लिए आभार , आप सभी का स्नेह इसी प्रकार मिलता रहे यही आमना है .

Comment by vijay nikore on June 19, 2014 at 12:08pm

इस अच्छी गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय लक्ष्मण जी।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 19, 2014 at 10:19am

आदरणीया लक्ष्मण भाई , लाजवाब गज़ल के लिये आपको दिली बधाइयाँ ॥

पता   है   तू   भुजंगों  में   तेरी   फितरत   विषैली   है

मैं   चंदन   हूँ  न   बदलूंगा   जहर   तेरे   उगलने   से , -------- वाह वा , क्या बात है भाई जी , बधाई ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 19, 2014 at 8:49am

आ० भाई रमेश कुमार जी , ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद .

Comment by रमेश कुमार चौहान on June 18, 2014 at 10:20pm

इस सुंदर गजल के लिये बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2014 at 9:23am

आदरणीया राजेश बहन आपसे प्रशंसा पाकर दिली प्रशन्नता मिली . लेखन सफल हुआ . हार्दिक धन्यवाद .

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 18, 2014 at 9:21am

आदरणीय भाई विजय शंकर जी ग़ज़ल की प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार . आपका स्नेह व आशीष आजीवन मिलता रहे यही कामना है .धन्यवाद .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
9 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
9 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
16 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service