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दरिया रहा कश्ती रही लेकिन सफर तन्हा रहा

हम भी वहीं तुम भी वहीं झगड़ा मगर चलता रहा

साहिल मिला मंजिल मिली खुशियां मनीं लेकिन अलग
खामोश हम खामोश तुम फिर भी बड़ा जलसा रहा

सोचा तो था हमने, न आयेंगे फरेबे इश्क में
बेइश्क दिल जब तक रहा इस अक्ल पर परदा रहा

शिकवे हुए दिल भी दुखा दूरी हुई दोनों में पर
हर बात में हो जिक्र उसका ये बड़ा चस्का रहा

छाया नशा जब इश्क का 'चर्चित' हुए कु्छ इस कदर
गर ख्वाब में उनसे मिले तो शहर भर चर्चा रहा

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

- विशाल चर्चित

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 31, 2014 at 9:50am

यानि जून के करीब प्रथम हफ़्ते के आसपास के बाद अपने अनन्य भाई अगस्त के आखिरी दिन देहरी पर आये हैं.. :-)))

आपकी गरिमामय उपस्थिति से हम सभी हर समय लाभान्वित व सम्मानित होना चाहते हैं, विशाल भाई ..

शुभ-शुभ

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on August 31, 2014 at 8:47am

हृदय से आभारी हूं एवं प्रणाम करता हूं आपके स्नेह को सौरभ सर कि आपने सराहना के साथ ही एक दोष भी इंगित किया.... इस बहाने मुझे इस दोष के बारे में जानने का अवसर मिला.... सच्ची में मैं तो इस दोष के बारे में जानता ही नहीं था....!!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 3:03pm

अय हय.. अय हय !

कमाल तो करते ही हैं, भाई, अब आप धमाल भी करने लगे हैं ! .. हा हा हा.. 

इस ग़ज़ल पर बधाई-बधाई-बधाई !!

अलबत्ता,  सोचा तो था हमने, न आयेंगे फरेबे इश्क में    तथा    हर बात में हो जिक्र उसका ये बड़ा चस्का रहा...   इन दो मिसरों को छोड़ दें तो अरुज़ के लिहाज से भी ग़ज़ल शानदार हुई है.

उपरोक्त मिसरों में शिकस्ते नारवा का दोष आ गया है.

शुभेच्छाएँ

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on June 8, 2014 at 10:47pm

निलेश भाई, श्याम भाई जी, अभिनव भाई, गिरिराज सर जी, कुन्ती जी, जितेन्द्र भाई, गोपाल सर जी, बृजेश भाई एवं वन्दना जी.... आप सभी का हृदय से आभार !!!

Comment by vandana on June 7, 2014 at 6:35am

वाह बहुत खूब !!! आदरणीय 

Comment by बृजेश नीरज on June 6, 2014 at 10:06pm

वाह! बहुत खूब! बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल! आपको बहुत-बहुत बधाई!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 5, 2014 at 11:30am

मित्र

क्या लाजवाब मक्ता है i  अति सुन्दर i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 4, 2014 at 11:56pm

बहुत सुंदर गजल आदरणीय विशाल जी, बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on June 4, 2014 at 6:17pm

सोचा तो था हमने, न आयेंगे फरेबे इश्क में
बेइश्क दिल जब तक रहा इस अक्ल पर परदा रहा.....क्या बात है.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 4, 2014 at 11:05am

आदरणीय विशाल भाई , लाजवाब ग़ज़ल कही है , बधाइयाँ ॥

छाया नशा जब इश्क का 'चर्चित' हुए कु्छ इस कदर
गर ख्वाब में उनसे मिले तो शहर भर चर्चा रहा ------------ मक्ते के लिये विशेष बधाइयाँ ॥

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