For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

VISHAAL CHARCHCHIT's Blog (15)

एक गजल

दरिया रहा कश्ती रही लेकिन सफर तन्हा रहा

हम भी वहीं तुम भी वहीं झगड़ा मगर चलता रहा

साहिल मिला मंजिल मिली खुशियां मनीं लेकिन अलग

खामोश हम खामोश तुम फिर भी बड़ा जलसा रहा

सोचा तो था हमने, न आयेंगे फरेबे इश्क में

बेइश्क दिल जब तक रहा इस अक्ल पर परदा रहा

शिकवे हुए दिल भी दुखा दूरी हुई दोनों में पर

हर बात में हो जिक्र उसका ये बड़ा चस्का रहा

छाया नशा जब इश्क का 'चर्चित' हुए कु्छ इस कदर

गर ख्वाब में…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on June 3, 2014 at 2:30pm — 13 Comments

कुछ दोहे आज के हालात पर (भाग - 2)

रट्टू तोते की तरह, क्यों रटते दिन रात

दादा जी का नाम भी, गूगल पर मिलि जात



त्रेता के सज्जन कहैं, सबके दाता राम

कलियुग के ढोंगी कहैं, हमरे आशाराम



दिन भर आगे सेठ के, डरि के दुम्म हिलायँ

साँझ ढले पव्वा लगै, अउर शेर हुइ जायँ



हफ्ते में तो चार दिन, काटैं मदिरा माँस

बाकी के कुल तीन दिन, धरम करम उपवास



अबला से सबला हुई, नाच नचावैं आज

बाबू जी की खोपड़ी, बजा रहीं ज्यों साज



गुरु से चेला बीस अब, देय रहा है…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on April 9, 2014 at 10:59pm — 18 Comments

कुछ दोहे आज के हालात पर

छप्पन व्यंजन खाय के,भरा पेट कर्राय

तब टीवी की खबर पर, 'देश प्रेम' चर्राय

नेता उल्लू साधते, आपन गाल बजाय

जनता देखय फायदा, बातन में आ जाय

जोड़-तोड़ बनि जाय जो, दोबारा सरकार

लूट-पाट होने लगे, बढ़ता भ्रष्टाचार

महंगाई जस जस बढ़ै, व्यापारी मुस्कायँ,

जैसे आवय आपदा, फौरन दाम बढ़ायँ

पत्रकारिता बिक गयी, कलम करे व्यापार

समाचार के दाम भी, माँग रहे अखबार

कामकाज को टारि के, बाबू गाल बजायँ

देश तरक्की…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on March 26, 2014 at 1:00pm — 14 Comments

दीपावली पर ओबीओ के लिये शुभकामना

छंदों के दीप जलें, शायरी की झिलमिल हो

हँसी खुशी भरी सदा, ओबिओ की महफिल हो

साहित्य करे उन्नति, भाषा का विकास हो

इस मंच पर सदा-सदा स्नेह का प्रकाश हो

सभी विधाओं का सभी दिशाओं में उत्थान हो

सभी नयी प्रतिभाओं के लिये यहां मुस्कान हो

समस्त लक्ष्य - योजना व स्वप्न साकार हो

आने वाले पल के सदा हाथ में उपहार हो

दीपावली की 'चर्चिती शुभकामना' फलीभूत हो

इस मंच के सभी प्रयास सफल व अनुभूत हों

(मौलिक एवं…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on November 3, 2013 at 2:00pm — 16 Comments

दीवाली पर एक नवगीत

क्यों रे दीपक

क्यों जलता है,

क्या तुझमें

सपना पलता है...?!

हम भी तो

जलते हैं नित-नित

हम भी तो

गलते हैं नित-नित,

पर तू क्यों रोशन रहता है...?!

हममें भी

श्वासों की बाती

प्राणों को

पीती है जाती,

क्या तुझमें जीवन रहता है...?!

तू जलता

तो उत्सव होता

हम जलते

तो मातम होता,

इतना अंतर क्यों रहता है...?!

तेरे दम

से दीवाली हो

तेरे दम

से खुशहाली…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on October 27, 2013 at 5:00pm — 31 Comments

गजल : इश्क में हम यूं हद से गुजर जायेंगे

बह्र-ए-मुतदारिक-मुसम्मन-सालिम

फाइलुन-फाइलुन-फाइलुन-फाइलुन

२१२.....२१२.....२१२.....२१२



इश्क में हम यूं हद से गुजर जायेंगे

आओगे पीछे पीछे जिधर जायेंगे



आजमाने की खुद को जरूरत नहीं

जादू जब चाह लें तुम पे कर जायेंगे



चाहने वाले तुमको कई होंगे पर

एक हम होंगे जो हँस के मर जायेंगे



जो सहारा तुम्हारा मिला जानेमन

तो अमर हम मुहब्बत को कर जायेंगे



हम तो 'चर्चित' हैं पहले से ही इश्क में

अब तुम्हें साथ चर्चित यूं…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on October 25, 2013 at 6:38pm — 16 Comments

बढ़े चलो - बढ़े चलो

बढ़े चलो - बढ़े चलो

स्वप्न सच किये चलो

जो भी आये राह में

लिये चलो - लिये चलो...



अड़्चनों - रुकावटों

चुनौतियों का सामना

दृढ़ प्रतिज्ञ बनके तुम

किये चलो - किये चलो...



अनुभवों से सीख लो

कमियों को सुधार लो

सबको ऐसी प्रेरणा

दिये चलो - दिये चलो...



आकलन से कम मिले

तो भी मुस्कुराओ और

बाकी पाने के लिये

लगे रहो - लगे रहो...



हार हो कि जीत हो

कि धूप हो कि छांव हो

तुम सदैव एक से

बने रहो - बने…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on August 25, 2013 at 8:34pm — 19 Comments

मत खेलो प्रकृति से....

लो झेलो अब गर्मी

भयानक-विकराल और

शायद असह्य भी..है न ?!!

देखो अब प्रकृति का क्रोध

तनी हुई भृकुटि और प्रकोप...



विज्ञान के मद में चूर

ऐशो आराम की लालच में

भूल बैठे थे कि है कोई सत्ता

तुमसे ऊपर भी,

है एक शक्ति - है एक नियंत्रण

तुम्हारे ऊपर भी...



एसी चाहिये-फ्रिज चाहिये

हर कदम पर गाड़ी चाहिये

लेकिन इन सबकी अति से

होने वाली हानि पर कौन सोचे

किसके पास है समय ?!!!



वैज्ञानिक कर रहे हैं शोध

पर किसके…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on May 27, 2013 at 9:30pm — 17 Comments

एक ग़ज़ल

क्या वजह क्या वजह कहर बरपा रहे

मेहरबां - मेहरबां से नजर आ रहे



ये दुपट्टा कभी यूँ सरकता न था


आज हो क्या गया यूँ ही सरका रहे



चूडियाँ यूँ तो बरसों से ख़ामोश थी


बात क्या है हुजूर आज खनका रहे



यूँ तो चेहरे पे दिखती थीं…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on April 3, 2013 at 6:30pm — 37 Comments

एक ग़ज़ल



क्या कहूं मैं किस तरह तकदीर का मारा हुआ


सर्द रातें थीं मगर बिस्तर का बंटवारा हुआ



कहने को तो साथ हैं वो हर कदम ओ हर घड़ी 

फिर भी उनकी बेरुखी से दिल ये नाकारा हुआ



यूं तो अपने हर तरफ हैं शबनमी दरिया मगर

जब नजर अपनी पडी पानी सभी खारा हुआ



जिनकी उम्मीदों पे सांसें चल रही थीं आज तक

वो न अपने हो सके, अपना जहां सारा हुआ



हंस…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on January 18, 2013 at 12:30am — 16 Comments

एक गजल

सभी अग्रजों एवं गुरुजनों को प्रणाम करते हुए यहां पहली बार गजल पोस्ट कर रहा हूं. उम्मीद है आप सबको पसन्द आयेगी.....





उठा दिल में धुआं सा है


पुराना प्यार जागा है,



कहो तो हम…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on October 29, 2012 at 8:30pm — 10 Comments

सरकार नहीं यह चेत रही......

एक प्रयास 'मत्त सवैया' यानी 'राधेश्यामी छंद' का......



सरकार नहीं यह चेत रही, महँगाई जान जलाती है |

रोटी भी मुश्किल होय रही, दिन रात रुलाई आती है | |

हर पक्ष - विपक्ष नहीं अपना, सब अपना काम बनाते हैं |

हैं दुश्मन…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on September 23, 2012 at 10:05pm — 10 Comments

भारत माता की वाणी हिंदी से जुडा पावन अवसर....

भारत माता की वाणी

हिंदी से जुडा

पावन अवसर,

आओ करें संकल्प

करेंगे इसका प्रयोग

हर स्तर पर...



हम रहें कहीं भी

नहीं भूलते 

जैसे अपनी माँ को,

याद रखेंगे वैसे ही

हम हिंदी की गरिमा को...



इन्टरनेट पर

जहाँ कहीं भी

अंग्रेजी हो मजबूरी,

वहाँ छोड़कर

हो प्रयास कि

हिंदी से हो कम…

Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on September 13, 2012 at 10:00pm — 6 Comments

आ प्रिये कि प्रेम का हो एक नया शृंगार अब....

आ प्रिये कि हो नयी

कुछ कल्पना - कुछ सर्जना,

आ प्रिये कि प्रेम का हो

एक नया शृंगार अब.....



तू रहे ना तू कि मैं ना

मैं रहूँ अब यूं अलग

हो विलय अब तन से तन का

मन से मन का - प्राणों का,

आ कि एक - एक स्वप्न मन का

हो सभी साकार अब....



अधर से अधरों का मिलना

साँसों से हो सांस…
Continue

Added by VISHAAL CHARCHCHIT on August 27, 2012 at 3:00pm — 26 Comments

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
1 hour ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
1 hour ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
2 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
4 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
5 hours ago
Profile IconSarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
9 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
yesterday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service