For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

१२१२      ११२२      १२१२     ११२  

हमारी बात उन्हें इतनी नागवार लगी

गुलों की बात छिड़ी और उनको खार लगी

बहुत संभाल के हमने रखे थे पाँव मगर

जहां थे जख्म वहीं चोट बार-बार लगी

कदम कदम पे हिदायत मिली सफर में हमें

कदम कदम पे हमें ज़िंदगी उधार लगी

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे

ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी

मदद का हाथ नहीं एक भी उठा था मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी

संजू शब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

Views: 1426

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 26, 2014 at 3:05pm

नहीं थी कद्र कभी मेरी हसरतों की उसे
ये और बात कि अब वो भी बेकरार लगी
मदद के हांथ नहीं एक भी उठे थे मगर
अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी
बहुत सुन्दर ...समय के साथ बहुत कुछ बदल जाता है
भ्रमर ५

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on May 26, 2014 at 11:08am

बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल है संजू जी। हर शे’र शानदार है। दिली दाद कुबूल करें।

Comment by sanju shabdita on May 26, 2014 at 10:02am

आदरनिया वंदना जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by sanju shabdita on May 26, 2014 at 10:01am

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय Shyam Narain Verma जी

Comment by sanju shabdita on May 26, 2014 at 10:00am
Comment by vandana on May 25, 2014 at 6:46am

वाह बहुत खूब ....बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीया 

Comment by Shyam Narain Verma on May 24, 2014 at 4:36pm
सुन्दर भावों से सजी इस गज़ल के लिए आपको बहुत बधाई।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 23, 2014 at 11:14pm

बेहतरीन गजल हुई आदरणीया संजू जी

मदद के हांथ नहीं एक भी उठे थे मगर

अजीब दौर कि बस भीड़ बेशुमार लगी..........वाह! बहुत खूब, हार्दिक बधाई स्वीकारें

Comment by sanju shabdita on May 23, 2014 at 8:58pm

आदरणीय gumnaam pithoragarh जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by sanju shabdita on May 23, 2014 at 8:57pm

आदरणीय आसिफ अमान जी मतला और पहला शेर मुझे भी बहुत प्रिय हैं इस ग़ज़ल में आपकी सहृदयता के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service