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देखा जब भी जाम मेरे हाथों रूठे

2222    2112  2 222

देखा जब भी जाम मेरे हाथों रूठे

कोई तो समझाए उन्हें दिल भी टूटे

हमसे कहते यार कभी भी मत पीना

खुद पीते मयख्वार  बड़े ही हैं झूठे

यारों अपने पास नशे की वो दौलत

चोरी करता चोर नहीं डाकू लूटे

माया ममता त्याग कठिन होता कितना

मय जब उतरे यार गले सब कुछ छूटे

हमको ये मालूम हुआ मैखाने आ

कहकर मय को शेख बुरा मस्ती लूटे

मैखाने से देख निकलना मयकश का

डगमग डगमग डिगे कदम सर भी फूटे 

मौलिक व अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2014 at 4:18pm

क्यों नहीं .. रदीफ़ रहे तो शिल्प बेहतर दीखता है.. आपकी इस ग़ज़ल में और के अलावे अन्य अक्षर नहीं हैं. जबकि अन्य अक्षर लिये जा सकते थे .. मगर फिर ह शेर कैसा लगता आपको भी मालूम है. यही कहना है मेरा..

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 23, 2014 at 3:12pm

आदरणीय सौरभ सर ..कृपा करके बताने का कष्ट करें क्या ऐ की मात्रा को बतौर काफिया लिया जा सकता है की नहीं ..बैसे आदरणीय शिज्जू जी के मार्गदर्षन के अनुरूप बहर में उनके सुझाव के अनुरूप परिवर्तन करने काप्रयास  कर रहा हूँ .आदरणीय सर आपसे हर दिन कुछ न कुछ सीखने को मिलता है आपका ये आशीर्वाद हम जैसे ग़ज़ल की राह पर चलने वाले नए मुसाफिरों के लिए प्रेरणा होता है ..सादर प्रणाम के साथ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 23, 2014 at 3:18am

की मात्रा को काफ़िया माना है आपने !

Comment by Meena Pathak on May 19, 2014 at 8:39am

सुन्दर गज़ल हेतु बधाई स्वीकारें.. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 17, 2014 at 5:21pm

आदरणीय आशुतोष भाई , गज़ल सुन्दर कही है , आपको हार्दिक बधाइयाँ । बह्र के विषय मे आदरणीय शिज्जू भाई जी से मै भी सहमत हूँ ॥

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2014 at 1:58pm

आदरणीय जीतेन्द्र जी ..बस आपका स्नेह यूं ही मिलता रहे ..हार्दिक धन्यवाद के साथ 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2014 at 1:57pm

अरुण जी ...हौसला अफजाई केलिए तहे दिल धन्यवाद ..आप सबकी प्रतिक्रियाओं से ही मैं निरंतर अपने रचनाओं में सुधार कर पा रहा हूँ ..बस यू ही स्नेह बनाए रखें सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2014 at 1:55pm

आदरणीय शिज्जू जी ..आपके सुझाव पर अमल जरूर करूंगा ..बहर परिवर्तन के बिषय में आपसे चर्चा भी करूंगा ...आप मेरी रचना पर मुझे बस इसी तरह आगाह करते रहे ताकी अगली रचना उस दोष से मुक्त हो सके ..हार्दिक धन्यवाद के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 17, 2014 at 1:50pm

आदरणीय लक्ष्मण जी ..रचना पर आपकी उत्साहित करने वाली प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल धन्यवाद .सदर 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 16, 2014 at 10:47pm

यारों अपने पास नशे की वो दौलत

चोरी करता चोर नहीं डाकू लूटे............वाह! क्या बात कही, बधाई आदरणीय डा.आशुतोष जी

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