For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

'' ईश्वर होना चाहता भी हूँ या नहीं " ( अतुकांत ) गिरिराज भंडारी

ईश्वर होना चाहता भी हूँ या नहीं

******************************

आज पूजा जा रहा हूँ ।

दूर दूर से आ कर

नत मस्तक हो हज़ारों हज़ारों भक्त

दुआयें मांगते हैं , चढ़ावे चढ़ाते हैं ,

अपनी अपनी मुरादों के लिये ।

उनकी अटूट ,गहरी आस्थाओं ने, विश्वासों ने  

सच में ज़िन्दा कर दिया है

मेरे अंदर , ईश्वरत्व ,

वो ईश्वरत्व

जो सारे ब्रम्हांड के कण कण में है ।

पूरी हो रहीं है मुरादें भी,

पर ,

कैसे कहूँ मै शुक्रिया उन हाथों का

जिनके सिद्ध हस्त प्रहारों ने

संतुलित , प्रेम पूर्ण प्रहारों ने

मुझे पत्थर से भगवान बनाया

कैसे करूँ मै धन्यवाद , क्योंकि ,

मै अनगढ़ ,

अपने प्राकृतिक रूप में ,

जैसा मुझे परम सत्ता ने बनाया था

जादा खुश था , शायद

किसी ने पूछा ही नही मुझसे,

कि , मै ,

ईश्वर होना चाहता भी हूँ या नहीं

********************* ********* 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

Views: 667

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on May 4, 2014 at 1:40pm

आदरणीय गिरिराज जी, मेरे कहे को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार!

पहली बात तो यह कि मैंने जो कुछ कहा वह मेरी अपनी मान्यता है. मेरी मान्यता किसी के लिए बाध्यता नहीं हो सकती.

समय की मांग का अर्थ है कि कविता और कसावट चाहती है. वह तभी संभव है जब आप कुछ और समय उसे देंगे. मेरे विचार से कविता कम बोले वही उसके लिए अच्छा होता है. जैसे मैंने एक पंक्ति कोट की थी उसकी इस कविता में कोई जरूरत नहीं. यह मेरा मानना है. आगे आप विचार कर लें.

अपने हिसाब से आपकी कुछ पंक्तियों को संशोधित करने की हिमाकत की है-

//आज पूजा जा रहा हूँ।

दूर-दूर से आकर

हज़ारों-हज़ार भक्त

दुआयें मांगते हैं, चढ़ावे चढ़ाते हैं,

अपनी मुरादों के लिए।

उनकी अटूट, गहरी आस्था, विश्वास ने  

सच में ज़िन्दा कर दिया है

मेरे अंदर ईश्वरत्व

वो ईश्वरत्व

जो सारे ब्रम्हांड के कण कण में है।//

//ववह ईश्वरत्व

जो सारे ब्रम्हांड के कण कण में है।//.. इन पंक्तियों के माध्यम से जो विरोधाभास पैदा करने की अपने कोशिश की थी, वह वास्तव में खुलकर सामने नहीं आ सका.

यहाँ मैं एक बात और कहना चाहता हूँ कि कविता लिखने की सबकी अपनी स्टाइल होती है इसलिए उस पर अधिक कुछ नहीं कहा जाना चाहिए. हालांकि मैंने खुद यहाँ उस नियम का उल्लंघन किया है. मेरा उद्देश्य सिर्फ यह कहना था कि कविता बिम्बों के सहारे इशारे करती चले उसी में कविता की सुन्दरता है..

आप स्वयं समझदार हैं, योग्य हैं. आशा है मेरा इतना अधिक कहना आपने अन्यथा नहीं लिया होगा.

सादर!.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 4, 2014 at 1:12pm

आदरणीय केवल भाई , रचना की सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 4, 2014 at 1:11pm

आदरणीया कुंती जी , रचना की सराहना के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 4, 2014 at 1:11pm

आदरणीय बृजेश नीरज भाई , 1 - विराम चिन्हों का भविष्य़ मे ध्यान रखूंगा

2-  मान्यता है कि हीरे को तराशने वाले का उपकार माना जाना चाहिये , इसी भाव से प्रेरित हो कर धन्यवाद कर न पाने की बात लिखा हूँ ।

3- पूरी हो रही है मुरादें // आम लोगों की मान्यता मे भी ईश्वरत्व पास हो रही है , जिनका विश्वास मुरादें पूरी होने या न होने पर टिकी रहती है ।

अपना मंतव्य मैने बता दिया , अगर इसमे कोई गलती हो तो कृपया मेरी रचना मे सुधार करने की कृपा करें ,रचना ,समय कहाँ और कैसे मांग रही है कृपया साफ बताने का कष्ट करें , ताकि आगे कुछ सुधार की सम्भावना बने , क्योंकि क्या सही है जाने बिना सुधार सम्भव नही है । रचना को समय देने के लिये आपका आभार । सादर निवेदित


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 4, 2014 at 12:58pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , रचना की सराहना के लिये आपका आभार !!

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 4, 2014 at 11:16am

भाईजी अतिसुन्दर प्रस्तुति । हार्दिक बधाई। सादर,

Comment by coontee mukerji on May 4, 2014 at 12:06am

शायद ईश्वर होना बहुत बड़ी विडम्बना है.बहुत ही गूढ़ विषय लिया है अपने.

मै अनगढ़ ,

अपने प्राकृतिक रूप में ,

जैसा मुझे परम सत्ता ने बनाया था

जादा खुश था , शायद

किसी ने पूछा ही नही मुझसे,

कि , मै ,

ईश्वर होना चाहता भी हूँ या नहीं.....अनेक साधुवाद गिरिराज जी.

Comment by बृजेश नीरज on May 3, 2014 at 11:46pm

अच्छी कविता है. आपको बहुत बधाई!

कविता कुछ और समय चाहती है.

एक बात समझ नहीं आई- यदि पत्थर रहते ज्यादा खुश था तो फिर उन हाथों का धन्यवाद क्यों करना चाहता है जिसने उसे भगवान् बनाया.

//पूरी हो रहीं है मुरादें भी,//........? कविता के विषय के सन्दर्भ में इस पंक्ति का क्या महत्व है?

कविता के इस रूप में विराम चिन्हों का बहुत स्थान नहीं होता. अर्ध-विराम चिन्ह अनावश्यक रूप से बहुत अधिक प्रयोग किए गए हैं.

'वो' और 'वह' में अंतर होता है. ग़ज़ल के फेर ने इस अंतर को ख़त्म कर दिया है. इसे बनाए रखना बहुत जरूरी है. 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 3, 2014 at 8:21pm

आदरणीय भाई गिरिराज जी एक यथारथपर्क अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service