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धर्मांद सोच- डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी'

महात्माओं और पीरों के देश में 

गांधी कवीर और फकीरों के देश में 

पूजा प्यार और पहरावे पर भी 

इन्सान होने की परिभाषा

न जाने क्यों बदल जाती है 

इक छोटी चिंगारी भी 

शोला बन जाती है 

मुठियाँ भिंच जाती हैं 

तलवारें खिंच जाती हैं 

घर जलाए जाते हैं 

कत्ल किये जाते हैं 

कुछ जाने पहचाने 

चेहरों द्वारा 

कुछ अपने बेगाने 

मोहरों द्वारा 

और साथ ही 

कत्ल हो जाता  है 

धू-धू जल जाता है 

दशकों पुराना रिश्ता प्यारा 

अटूट बिश्वास और भाई चारा 

धर्मांद सोच पर जलती नहीं 

कभी मिटती नहीं 

हो जाती है मगर और भी कठोर 

पानी चढ़े लोहे की तरह I

***-***-***

"मौलिक व अप्रकाशित"

डॉ.कंवर करतार 'खन्देह्ड़वी'

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Comment

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Comment by कंवर करतार on May 3, 2014 at 6:17pm

भाई नादिर ख़ान,आपको रचना अच्छी लगी इसके लिए आपका हार्दिक अभिन्दन I

Comment by नादिर ख़ान on May 2, 2014 at 8:22pm

धर्म इंसानियत सिखाता है, जो हम नहीं सीख पाये ... सुंदर रचना है आदरणीय डॉ कवर जी ...

Comment by coontee mukerji on May 2, 2014 at 2:55am

सुंदर रचना के लिये हार्दिक बधाई.

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