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प्रतीक्षा -- ( लघुकथा )

आज कल्पवास के आखरी दिन भी वो रोज की तरह पेड़ के नीचे बैठ चारो तरफ नजरें घुमा-घुमा कर किसी को ढूंड रही है जैसे किसी के आने की प्रतीक्षा हो उसे, पूरा दिन निकल गया शाम होने को है, सूर्य की प्रखर किरणें मद्धम पड़ चुकी हैं, पंक्षी अपने-अपने घोसलों में पहुँच गये हैं, बस् कुछ देर में ही दिन पूरी तरह रात्रि के आँचल में समा जाएगा पर अभी तक वो नही दिखा जिसका बर्षों से वो प्रतीक्षा कर रही है |
“वर्षों पहले इसी कुम्भ में कल्पवास के लिए छोड़ गया था ये कह कर की कल्पवास समाप्त होने पर आ के ले जाऊँगा पर आज भी नही आया..शायद अगले कल्पवास में उसे माँ की याद आ जाये..पर तब तक शायद मै ही ना रहूँ” कहते हुए उसकी आवाज काँप गई अपनी झुकी हुयी कमर के साथ किसी तरह अपनी लाठी के सहारे चलती हुई वो रात्रि के अंधेरे में विलीन हो गई |

मीना पाठक
मौलिक/अप्रकाशित

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Comment by Saurabh Pandey on May 2, 2014 at 12:05pm

काशी-करवट, गंगा-लाभ, कल्पवास, ये कुछ ऐसे शब्द हैं जिनके बाह्यावरण के चमत्कारी उजास के भीतर पलायनवादी-सोच की घनघोर कालिख भी पटी पड़ी है. इसे तनिक छेड़ा नहीं कि छेड़ने वाले के अंग तो क्या मन-मस्तिष्क तक को अपनी कालिमा से पोत कर रख देती है. परम्पराओं के नाम पर पुत्रधर्म के दायित्व से पीठ मोड़ लेने को सार्थकता का निर्लज्ज आवरण देती सामाजिक व्यवहार की इस घृणित कालिमा को संज्ञान के उजास में लाने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया मीनाजी.

कथ्य जितना सहज है, इसकी बुनावट भी उतनी ही संतुष्ट करती हुई है. आपका लेखन सचेत है. यह लघुकथा शिल्प के सभी विन्दुओं को संतुष्ट करती हुई प्रस्तुत हुई है. यह अवश्य है कि पंक्चुएशन के प्रति सतर्क रहना अत्यंत आवश्यक है. आगे से एक लेखिका तौर पर इस ओर अधिक सचेत रहें.
शुभ-शुभ
 

Comment by Meena Pathak on May 2, 2014 at 11:29am

सही कहा आप ने आ० शुभ्रांशु जी , जो किया वही तो मिलना है | 

आभार रचना पर सादर उपस्थिति हेतु 

Comment by Shubhranshu Pandey on May 1, 2014 at 4:28pm

आह सम्भाल के रखे अपने आप को,... शायद एक दो कल्पवास के बाद उसका बेटा भी उसी तरह पेड़ के नीचे किसी का इन्तजार करता मिले....वापस लिये जाने की इच्छा लिये हुये...

Comment by Meena Pathak on May 1, 2014 at 12:55pm

सादर आभार आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी 

Comment by Meena Pathak on May 1, 2014 at 12:54pm

बहुत बहुत आभार प्रिय जितेन्द्र लघुकथा सराहने हेतु | सस्नेह 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 1, 2014 at 9:55am

आदरणीया मीना जी इस लघु कथा ने बड़ी बात कह दी.... काश लोग अपने माँ बाप ....बृद्ध जन की भावनाओ को समझें और भरपूर प्यार दें प्रेम परवान चढ़े दिलों में। 
भ्रमर ५

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 1, 2014 at 12:29am

बहुत मर्मस्पर्शी , आँखे नम हो गई. ईश्वर से यही कामना रहती है की बुजुर्गों को कहीं भी , कभी भी इस तरह का जीवन न सहना पड़े

कथा पर हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया मीना दीदी

Comment by Meena Pathak on April 30, 2014 at 10:20pm

लघुकथा सराहना हेतु आभार अन्नपूर्णा जी 

Comment by annapurna bajpai on April 29, 2014 at 3:39pm

आ0 मीना दी बहुत ही मार्मिक कथा का चित्रण हुआ है । आपको बधाई इस सुंदर रचना कर्म के लिए । 

Comment by Meena Pathak on April 29, 2014 at 3:13pm

लघुकथा सराहने हेतु सादर आभार आ० रमेश जी 

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