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2122 1122 22

ज़ोर तूफ़ान का चल जाने दो

मुझको लहरों पे निकल जाने दो

 

है मुख़ालिफ़ कि हवाओं का रूख

ठहरो कुछ देर सँभल जाने दो

 

फिर न दिल में कोई रह जाये मलाल

इक दफा दिल को मचल जाने दो

 

मोजज़ा हो न हो उम्मीदें हों                          मोजज़ा =चमत्कार

जी किसी तरह बहल जाने दो

 

आग आखिर ये बुझेगी तो ज़रूर

डर इसी आग में जल जाने दो

 

बूंद जायेगी कहाँ तक देखूँ

गिर के पत्थर पे उछल जाने दो

 

रात गहरी हुई जाती है अब

बस करो यार ग़ज़ल जाने दो

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by शिज्जु "शकूर" on April 29, 2014 at 8:54pm

आदरणीय गुमनाम भाई मैने जो बह्र लिया है उसके आखिरी में 22 को 112 भी किया जा सकता है इसके अलावा किसी भी अरकान के आखिर में एक अतिरिक्त लघु भी लिया जा सकता है इस प्रकार इस मिसरे को वज्न 2122 1122 112+1 आया है


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Comment by गिरिराज भंडारी on April 29, 2014 at 5:31pm

आदरनीय शिज्जू भाई,  बहुत खूब सूरत गज़ल कही है , दिली बधाइयाँ !!

 

बूंद जायेगी कहाँ तक देखूँ

गिर के पत्थर पे उछल जाने दो -----  बहुत खूब भाई जी , बधाइयाँ !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 29, 2014 at 3:32pm

आदरणीया वंदनाजी आपका हार्दिक आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 29, 2014 at 3:29pm

आदरणीय मुकेश भाई आपका बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by रमेश कुमार चौहान on April 29, 2014 at 2:31pm

 बहुत ही सुंदर आदरणीय भैयाजी, बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 29, 2014 at 1:31pm

भ्रम की राह निकल जाने दो

हाल जो भी हो सँभल जाने दो.........बहुत सुंदर, एक सकारात्मक नसीहत

मोजज़ा हो न हो उम्मीदें हों                         

जी किसी तरह बहल जाने दो..........वाह! क्या बात कही है

बहुत शानदार गजल कही आपने आदरणीय शिज्जू जी, दिली बधाई स्वीकारें

Comment by Gajendra shrotriya on April 28, 2014 at 10:58pm

फिर न दिल में कोई रह जाये मलाल

इक दफा दिल को मचल जाने दो

 खूबसूरत ग़ज़ल के लिए और खासकर इस दिलकश शेर के लिए दिली दाद कबूलें भाई शिज्जु शकूर साहब। 

Comment by वीनस केसरी on April 28, 2014 at 9:02pm

बहुत खूब, जनाब
शानदार ग़ज़ल हुई है

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 28, 2014 at 4:58pm

2122 1122 22

फिर न दिल में कोई रह जाये मलाल

ye kaise please sir bataye meri samajh me nahi aaya,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

Comment by vandana on April 28, 2014 at 3:07pm

 

मोजज़ा हो न हो उम्मीदें हों                          मोजज़ा =चमत्कार

जी किसी तरह बहल जाने दो

बूंद जायेगी कहाँ तक देखूँ

गिर के पत्थर पे उछल जाने दो

वाह बेहतरीन अशआर 

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