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घनाक्षरी : अरुन 'अनन्त'

आदरणीय गुरुजनों, अग्रजों एवं प्रिय मित्रों घनाक्षरी पर यह मेरा प्रथम प्रयास है कृपया त्रुटियों से अवगत कराएँ.

मनहरण - घनाक्षरी

क्रूरता कठोरता अधर्म द्वेष क्रोध लोभ
निंदनीय कृत्य पापियों का प्रादुर्भाव है,

दूषित विचार बुद्धि और हीन भावना है,
आदर सम्मान न ह्रदय में प्रेम भाव है,

नम्रता सहृदयता विवेक न समाज में,
सभ्यता कगार पर धर्मं का आभाव है,

बदली है वेषभूषा बदला है रंगढंग
बदला हुआ बड़ा मनुष्य का स्वाभाव है.

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by अरुन 'अनन्त' on April 23, 2014 at 10:56am

हार्दिक आभार अनुराग भाई जी

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 23, 2014 at 7:28am

बहुत सुंदर भाव, बधाई आदरणीय अरुण अनंत जी

Comment by annapurna bajpai on April 22, 2014 at 6:36pm

  खूबसूरत घनाक्षरी , बधाई हो प्रिय अरुण । 


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Comment by गिरिराज भंडारी on April 22, 2014 at 5:51pm

आदरनीय अरुण भाई , छंद पढ के बहुत अच्छा लगा , शिल्प से अनजान हूँ , आपको बहुत बधाइयाँ !!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on April 22, 2014 at 8:22am

सुन्दर प्रयास ! प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई  

Comment by Sarita Bhatia on April 21, 2014 at 1:54pm

अरुण हार्दिक बधाई इस प्रथम प्रयास पर 

आखिरी पंक्ति को ऐसे करके देखिये ...

बदला हुआ बड़ा ही मानव स्वभाव है ..केवल सुझाव है बाकी जैसे आपको उचित लगे 

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 21, 2014 at 1:02pm

वाह बहुत उम्दा घनाक्षरी हुई है आदरणीय | बहुत सुन्दर भाव पिरोये हैं आपने |
सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 21, 2014 at 12:26pm

आदरणीया माँ जी घनाक्षरी पर किया प्रथम प्रयास आपको पसंद आया प्रयास सफल हुआ ओह्ह ध्यान नहीं गया इस ओर टाइपिंग में गलती हो गई सुधार कर लेता हूँ हार्दिक आभार आपका आपने अंतिम पंक्ति में जो सुझाव दिया है वो पंक्ति गुनगुनाने पर थोड़ी अटक रही है या शायद मुझसे कोई गलती हो रही है. क्षमा चाहता हूँ


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Comment by rajesh kumari on April 21, 2014 at 12:17pm

प्रिय अरुन बहुत सुन्दर प्रयास है बेहतरीन घनाक्षरी  हुई ह्रदय से बधाईयाँ ----वेशभूषा कर लीजिये--- अंतिम पंक्ति इस प्रकार हो तो प्रवाह देखिये --बदला हुआ मानव का बड़ा स्वभाव है 

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