For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

है ताब मुझे / एक ताज़ा तरही गज़ल

2122 1212 112
इश्क में जायेगी ये जान भी क्या
सब्र तोड़ेगा इम्तेहान भी क्या
.
ठोकरें हमको कर गयीं हैरां
आपने बदली है जबान भी क्या
.

गिर के नज़रों में कोई तुम ही कहो
जीत पायेगा ये जहाँन भी क्या
.
चाँद देखा था रात सहमा सा
'इस जमीं पर है आसमान भी क्या'
.
काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या
.
फिर मुझे प्यार पर यकीन हुआ
नर्म दिल में तेरा निशान भी क्या
.
एक जुम्बिश हुयी है दिल में कहीं
ज़िक्र में आई मेरी जान भी क्या
.
मौलिक/ अप्रकाशित

संशोधित

Views: 1003

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by वेदिका on June 16, 2014 at 10:58am

आपकी गरिमामय उपस्थिती से रचना सार्थक हुयी| आपका हार्दिक आभार आ० राजेश दी!

आपके सुझाव का सहर्ष स्वागत है|

सादर वेदिका

Comment by वेदिका on June 16, 2014 at 10:55am

आभार आ० लक्ष्मण जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 16, 2014 at 10:03am

प्रिय वेदिका ,ये हुई न बात !!!! कितनी सुन्दर ग़ज़ल लिखी है देर से पढ़ी इसका खेद है सभी अशआर ....सुभानल्लाह ...ढेरों बधाई 

जो मैं कहना चाह रही थी आ० सौरभ जी पहले ही इंगित कर चुके हैं ...इस समस्या के निवारण की मैंने एक कोशिश की है यदि आपको अच्छा लगे ...आपके ही शब्द हैं आपके ही भाव हैं ..बस इस तरह कहें तो-----

गिर गया जो नज़र में अपनी कहो ,

जीत पायेगा ये जहान भी क्या.

दिली दाद आपको इस खूबसूरत ग़ज़ल पर |
.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 16, 2014 at 9:33am

वाह...क्या बात है , बधाई कबूल करें .

Comment by वेदिका on June 15, 2014 at 11:30pm

आ० सौरभ जी! एवं आ० शिज्जु जी!

गज़ल मे फाइलातुन को निभाने के लिए मुझे नज़्र शब्द का उपयोग करना पड़ा| नज़र के इलावा इसका कोई दूसरा अर्थ भी होता है, इस तथ्य से मै अनभिज्ञ थी| इस कारण से गज़ल दोषयुक्त हो रही है, इसे दोषमुक्त करने के लिए मार्गदर्शन दीजिये|  

Comment by वेदिका on June 15, 2014 at 11:15pm

आपकी दिली दाद दिल से कुबूल प्रिय महिमा

आभार!

Comment by वेदिका on June 15, 2014 at 11:14pm

गज़ल पर आपकी प्रतिक्रिया हेतु बहुत बहुत आभार आ० मंजरी जी!

Comment by mrs manjari pandey on June 15, 2014 at 9:21pm
आदरणीया गीतिका जी बहुत ही भावपूर्ण मार्मिक ग़ज़ल के लिए बधाई
Comment by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 4:20pm

काट दे पर मेरे है ताब मुझे
रोक पायेगा तू उड़ान भी क्या..
.एक जुम्बिश हुयी है दिल में कहीं
ज़िक्र में आई मेरी जान भी क्या

क्या बात है .. शानदार गज़ल गीतिका जी .. दिली दाद प्रेषित हैं ...


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 15, 2014 at 8:58am

ओह, भाई शिज्जूजी ने ऑलरेडी इशारा कर दिया है. शुक्रिया भाई !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service