For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल ‘ ऐसा दिया है ज़हर ‘ --- 'चिराग'

221 2121 1221 212

 

बाज़ारे-इश्क़ सज गया पूरे उफान पर

शीला का नाम चढ़ गया सबकी ज़बान पर

 

धंधे की बात कीजिए कच्ची कली भी है

क्या कुछ नहीं मिलेगा मेरी इस दुकान पर

 

मुँह में दबाए पान मियाँ किस तलाश में

रंगीनियाँ भुला भी दो उम्र अब ढलान पर

 

कूंचे में आए हुस्न का बाज़ार देखने

चोरी से देखते है सभी इक निशान पर

 

रोज़ आते हैं दीवाने यहाँ गम को बाँटने

करते है वाह-वाह वो घुंघरू की तान पर

 

घायल हो जिसके प्यार में उसको कहाँ ख़याल

ध्यान अपना अब लगाओ ज़रा तुम अज़ान पर

 

उल्फत का खेल संग मेरे खेलकर 'चिराग'

ऐसा दिया है ज़हर की बन आई जान पर

 

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 935

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by gumnaam pithoragarhi on April 19, 2014 at 5:15pm

वाह! बहुत खूब,वाह  बधाई स्वीकारें

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 19, 2014 at 5:13pm

मुकेश जी ग़ज़ल अच्छी बन पड़ी है पसंद आई शिज्जू भाई जी ने बिलकुल सही बह्र बताई है

221 2121 1221 212
बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ़ महजूफ

ध्यान अपना अब लगाओ ज़रा तुम अज़ान पर ? इसकी तक्तीअ पुनः कर लें बह्र में गड़बड़ी है.

इस सद्प्रयास पर बधाई प्रेषित करता हूँ स्वीकार करें.

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 10:12pm

आदरणीय शिज़्जू भाई
सही है आप.. बहुत बारीक ग़लती पकड़ी है आपने. बहुत शुक्रिया
मेरा बिल्कुल ध्यान नहीं गया इस तरफ.. दिल खुश कर दिया आपने.. आगे भी नज़रे इनायत रखिएगा.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 17, 2014 at 10:02pm

आदरणीय मुकेश भाई बेहतरीन ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई।
बह्र मेरे खयाल से 221 2121 1221 212 होना चाहिये

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 9:17pm

आदरणीय उमेश जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया..

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 9:15pm

आदरणीय गिरिराज जी
हौसला अफज़ाई के लिए शुक्रिया..जी हाँ , मैने इसे १२१ पर ही बाँधा है और ऐसा किया जा सकता है..

Comment by umesh katara on April 17, 2014 at 8:21pm

चिराग जी अच्छी कोशिश के लिये बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 17, 2014 at 7:31pm

आदरणीय मुकेश भाई , एक खूबसूरत गज़ल के लिये दिली दाद कुबूल करें !!  दीवाने को आपने  121 मे बान्धा है  मेरे ख्याल से इसे  221 किया जा सकता है , एक बार सोच लीजियेगा ।

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 6:07pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी
हौसला अफज़ाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया. जी हाँ..शायद आप सही हो. हर तरह की आलोचना का स्वागत है.. क्योंकि इस विधा में पारंगत हो ऐसा कोई नहीं मिला आज तक मुझे.. सब यहीं कहते हैं मैं सीख रहा हूँ. और मैं भी. अक्सर लिखने वाला लिख जाता है पर जब तक सन्दर्भ न लिखा जाए.. पढ़ने वाला उसे अपनी कल्पना से पढ़ता है..ऐसा हर रचना के साथ होता है. पर यही तो रास्ता है आगे बढ़ने का.. शायद

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 17, 2014 at 5:47pm

अच्छा प्रयास है मुकेश साहब, मगर मुझे ज्यादातर शे’र सपाटबयानी लग रहे हैं। हो सकता है मैं ग़लत होऊँ। प्रयास के लिए दाद हाजिर है।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service