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मेरी साँसों में तुम ही हो,मेरा अन्दाज भी हो तुम

मेरी धडकन में हो तुम ही,मेरी आबाज भी हो तुम

मेरी साँसों में तुम ही हो,मेरा अन्दाज भी हो तुम 

यहाँ है अब तलक चर्चा हमारी ही मुहब्बत का

मगर मत भूल जाना तुम ,मेरे हमराज भी हो तुम

तुम्हारे ही निशाने पर रहा हूँ मैं हमेशा ही

कभी लगता है क्यों मुझको निशानेबाज भी हो तुम

कभी पल भर मैं ठहरा था, तेरी जुल्फों के साये मे
मुझे अहसास है अब तक ,मेरे सरताज भी हो तुम

गये लम्हों की कहकर थे ,कई अरसे गुजारे हैं

नहीं फिर लौटकर आये ,वहानेबाज भी हो तुम

उमेश कटारा

मौलिक एंव अप्रकाशित

Views: 670

Comment

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Comment by umesh katara on April 17, 2014 at 8:27pm

लक्ष्मन जी शुक्रिया हौसला देने के लिये

Comment by umesh katara on April 17, 2014 at 8:26pm

मुकेश जी शुक्रिया आपका

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 17, 2014 at 3:31pm

आदरणीय उमेश जी
आपने बे'हर नहीं लिखा है 
१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
अच्छी ग़ज़ल हुई है बहुत मुबारकबाद

अंदाज़ और सरताज में फ़र्क़ है.. जिसकी वजह से इक़्फा दोष पैदा हो रहा है

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2014 at 11:11am

आदरणीय उमेश कटारा जी एक अच्छी ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

कृपया ध्यान दे...

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