For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इम्तेहान ( गजल )

221 2121 1221 212

----------------------------------------------
जिंदगी मैं अभी भी कुछ इम्तेहान बाकी हैं

गुजरी हैं आंधियां अभी तूफ़ान बाकी हैं

मैं दूर तेरी महफ़िल से जाऊं भी तो कैसे

महफ़िल मैं तेरी मेरे भी कदरदान बाकी हैं

बे-ईमानों की दुनिया मैं घूमता हूँ शान से

जब तक मेरे सीने मैं मेरा ईमान बाकी है

लौटकर के मौत भी घर से मेरे खाली गई

मेरी माँ का कोई ऐसा वरदान बाकी है

सो रहा है मुल्क मेरा जो सुकूं और चैन से

सरहद पे जान लुटाता हुआ जवान बाकी है

तुम जलाके बस्तियां कर दो हमें बे-घर भले

जमीं बिछौना ओढने को तो आसमान बाकी है

तुम ढूंढते फिरते हो जिसे मंदिरों मैं सारी उमर

कैसे मिलेगा दिल मैं जब तेरे शैतान बाकी है

तुम फिजूल तीर तीखे अपनों पे चलाते रहे

तरकश है खाली बस हाथ मैं कमान बाकी है

बेटा कमाने दौलतें देश से विदेश चला गया

तीरथ लेके जाये कहाँ वो संतान बाकी है

इंसानियत दुनिया मैं जिंदा रहेगी तब तलक

जब तक के आखिरी नेक दिल इंसान बाकी है

( मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 926

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on April 15, 2014 at 2:20pm

सुन्दर गज़ल हुई | बधाई 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2014 at 9:40am

सचिन जी भाव बहुत शानदार हैं ग़ज़ल में किन्तु आपके अशआर उपर्युक्त बह्र के अनुसार नहीं हैं एक बार जांच लें सही बह्र पर इसे कसेंगे तो उम्दा ग़ज़ल बनेगी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 15, 2014 at 7:43am

आदरणीय सचिन भाई कोशिश अच्छी है बस तक्ती दोबारा करके देख लें, शुभकामनायें

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 14, 2014 at 11:18pm

वाह ! क्या बात है आदरणीय सचिन जी, बहुत सुंदर.. जोश से भरी गजल

बे-ईमानों की दुनिया मैं घूमता हूँ शान से

जब तक मेरे सीने मैं मेरा ईमान बाकी है..........सांच को क्या आंच

तुम जलाके बस्तियां कर दो हमें बे-घर भले

जमीं बिछौना ओढने को तो आसमान बाकी है......गजब का शेर हुआ

दिली बधाई कुबूल कीजियेगा

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 14, 2014 at 11:09pm

आदरणीय सचिन जी
ग़ज़ल पर मुबारकबाद..लिखते रहिए..
बे'हर लिखा है..मतलब आप संजीदा है..कोशिश जारी रखिए.

Comment by ANJU MISHRA on April 14, 2014 at 8:36pm

बहुत सुंदर ....इम्तेहान बाकी है ,,,,वाह ! 

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 14, 2014 at 7:17pm

वाह क्या कहने सुन्दर ग़ज़ल
सादर

Comment by Shyam Narain Verma on April 14, 2014 at 5:13pm
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें ........................
Comment by gumnaam pithoragarhi on April 14, 2014 at 4:58pm

ग़ज़ल के भाव अच्छे लगे बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"ऐसे😁😁"
10 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"अरे, ये तो कमाल  हो गया.. "
11 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय नीलेश भाई, पहले तो ये बताइए, ओबीओ पर टिप्पणी करने में आपने इमोजी कैसे इंफ्यूज की ? हम कई बार…"
12 hours ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आपके फैन इंतज़ार में बूढे हो गए हुज़ूर  😜"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय लक्ष्मण भाई बहुत  आभार आपका "
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है । आये सुझावों से इसमें और निखार आ गया है। हार्दिक…"
15 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post मौत खुशियों की कहाँ पर टल रही है-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन और अच्छे सुझाव के लिए आभार। पाँचवें…"
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय सौरभ भाई  उत्साहवर्धन के लिए आपका हार्दिक आभार , जी आदरणीय सुझावा मुझे स्वीकार है , कुछ…"
16 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल पर आपकी उपस्थति और उत्साहवर्धक  प्रतिक्रया  के लिए आपका हार्दिक…"
16 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, आपकी प्रस्तुति का रदीफ जिस उच्च मस्तिष्क की सोच की परिणति है. यह वेदान्त की…"
17 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, यह तो स्पष्ट है, आप दोहों को लेकर सहज हो चले हैं. अलबत्ता, आपको अब दोहों की…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज सर, ओबीओ परिवार हमेशा से सीखने सिखाने की परम्परा को लेकर चला है। मर्यादित आचरण इस…"
17 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service