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गीत कोकिला गाती रहना/नवगीत/कल्पना रामानी

बने रहें ये दिन बसंत के,

गीत कोकिला गाती

रहना।

 

मंथर होती गति जीवन की,

नई उमंगों से भर जाती।

कुंद जड़ें भी होतीं स्पंदित,

वसुधा मंद-मंद मुसकाती।

 

देखो जोग न ले अमराई,

उससे प्रीत जताती

रहना।

 

बोल तुम्हारे सखी घोलते,

जग में अमृत-रस की धारा।

प्रेम-नगर बन जाती जगती,

समय ठहर जाता बंजारा।

 

झाँक सकें ना ज्यों अँधियारे,

तुम प्रकाश बन आती

रहना।

 

जब फागुन के रंग उतरकर,

होली जन-जन संग मनाएँ।

मिलकर सारे सुमन प्राणियों

के मन स्नेहिल भाव जगाएँ।

 

तब तुम अपनी कूक-कूक से

जय उद्घोष गुँजाती

रहना।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by कल्पना रामानी on April 3, 2014 at 9:54pm

आदरणीय अरुण अनंत जी, आपकी टिप्पणी ने उत्साह में बीस गुनी वृद्धि कर दी। आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on April 3, 2014 at 9:52pm

आदरणीय सौरभ जी, रचना पर आपके  अनुमोदन से सकारात्मक विचारों में और वृद्धि हो जाती है। आपका हृदय से आभार

Comment by कल्पना रामानी on April 3, 2014 at 9:50pm

आदरणीय आशुतोष मिश्रा जी, आपकी ऊर्जावर्धित करती हुई सुंदर टिप्पणी के लिए मन से धन्यवाद

Comment by कल्पना रामानी on April 3, 2014 at 9:48pm

आदरणीय लड़ीवाला जी,प्रोत्साहित करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद

Comment by Arun Sri on April 3, 2014 at 11:50am

//देखो जोग न ले अमराई//................ रोमांच हो आता है जब इस तरह का लिखा पढता हूँ ! ये एक पंक्ति बीसियों पर अकेले भारी ! बहुत सुन्दर गीत !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 3, 2014 at 11:41am

प्रकृति के बिम्बों से सनातन आनन्द को साझा करना आपकी विशिष्टता रही है आदरणीया. इस कड़ी में प्रस्तुत गीत सकारात्मकता के आयाम को कुछ और विस्तृत करता है. गीत की पंक्तियों को पढ़ता चला गया.
किन्तु इस पंक्ति के लिए तो बार-बार बधाई -
देखो जोग न ले अमराई,
उससे प्रीत जताती
रहना।

सादर

Comment by Dr Ashutosh Mishra on March 28, 2014 at 5:41pm

आदरणीय कल्पना जी बसंत और कोयल के माध्यम से बेहद सुंदर कामनाएं की गयी हैं ..चुनिन्दा शब्द,रस प्रबाह और प्राणी मात्र की खुशियों की कामना इस गीत को अत्यंत रोचक बना देते है ..हमेशा की तरह शानदार इस रचना पर मेरी तरफ से तहे दिल बधाई सादर ..

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 28, 2014 at 4:16pm

बसंत के सदर्भ में सुन्दर गीत रचना के लिए बधाई आदरणीया कल्पना रामानी जी 

Comment by कल्पना रामानी on March 27, 2014 at 9:57pm

आ॰ गिरिराज जी, आ॰ ब्रह्मचारीजी,  आ॰ अरुण अनंतजी, आ॰ श्याम नरेनजी, आ॰ कुंती जी, आप सबका रचना की  सराहना करके प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार  

Comment by अरुन 'अनन्त' on March 27, 2014 at 3:57pm

आदरणीया कल्पना जी बहुत ही सुन्दर सरस मधुर नवगीत लिखा है आपने पढ़कर आनंद आ गया बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

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