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ज़िंदा हूँ मगर जीने का एहसास नही है

इक उसके चले जाने से कुछ पास नही है
ज़िंदा हूँ मगर जीने का एहसास नही है


वो दूर गया जब से ये बेजान है महफिल

साग़र है सुराही हैं मगर प्यास नही है


सुनने को तिरे पास भी जब वक़्त नही तो

कहने को मिरे पास भी कुछ ख़ास नहीं है

 

इस रूह के आगोश में है तेरी मुहब्बत
माना के तिरा प्यार मिरे पास नही है

रावण तो ज़माने में अभी ज़िंदा रहेगा
क़िस्मत में अभी राम के बनवास नही है

फिर कैसे यक़ी तुझपे करेगा ये ज़माना,
ख़ुद तुझको ही जब अपने पे विश्वास नही है

लेकर तो चला आया समंदर में मैं कश्ती
हिम्मत के सिवा कुछ भी मिरे पास नही है

ये राहे वफ़ा का है सफ़र सोच समझ ले
बस काई पे चलना है यहाँ घास नहीं है 

रिश्ते जो उगे झूठ की मिट्टी में है ‘सूरज’
फूलेंगे फलेंगे ये मुझे आस नही है

डॉ सूर्या बाली ‘सूरज’

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Comment

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Comment by बृजेश नीरज on March 23, 2014 at 9:43am

वाह! बहुत खूब! शानदार ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by annapurna bajpai on March 23, 2014 at 12:19am

बहुत खूब !! आ0 सूर्या बाली जी , बहुत बधाई आपको । 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 22, 2014 at 8:40am

ये राहे वफ़ा का है सफ़र सोच समझ ले

बस काई पे चलना है यहाँ घास नहीं है ............वाह! लाजवाब, कमाल का शेर

बहुत शानदार गजल आदरणीय डा.सूर्या जी, दिली दाद कुबूल कीजिये

 

Comment by Neeraj Neer on March 21, 2014 at 6:52pm

अब उसके सिवा कोई भी शै ख़ास नही है

ज़िंदा हूँ मगर जीने का एहसास नही है .. आहा दिल खुश हो गया पढ़कर, बहुत बढियां .. 

Comment by नादिर ख़ान on March 20, 2014 at 10:26pm

अदरणीय सूरज जी मतले से लेकर, मकते तक के सारे अशआर  लाजवाब है । बहुत करीने से एक एक अल्फ़ाज़ बिठाये है आपने बहुत बधाई  आपको ...... 

Comment by Kundan Kumar Singh on March 20, 2014 at 9:49pm

ये राहे वफ़ा का है सफ़र सोच समझ ले

बस काई पे चलना है यहाँ घास नहीं है  

बहुत ही सुंदर । गजल के मिसरो ने मन मोह लिया।

Comment by ram shiromani pathak on March 20, 2014 at 9:35pm

बहुत सुन्दर गजल आदरणीय ..........

ये राहे वफ़ा का है सफ़र सोच समझ ले

बस काई पे चलना है यहाँ घास नहीं है ///////

इक उसके न होने से ही बेजान है महफिल

साग़र है सुराही हैं मगर प्यास नही है//////इन दोनों अशआरों के विशेष बधाई आपको। ……  सादर 

 

Comment by shashi purwar on March 20, 2014 at 7:42pm

वाह बहुत सुन्दर गजल। ....... आदरणीय बाला जी हार्दिक बधाई

इक उसके न होने से ही बेजान है महफिल

साग़र है सुराही हैं मगर प्यास नही है

 ……। वाह 

Comment by बसंत नेमा on March 20, 2014 at 12:23pm

आ0 सूरज जी बहुत दिनो बाद आप की गजल पढने को मिली ... बहुत खूबसूरत गजल के लिये  आप को बधाई .....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 19, 2014 at 5:51pm

आ. सूर्या बाली जी , खूबसूरत ग़ज़ल के लिये आपको बधाइयाँ ॥

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