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श्रीराम कुछ क्रोधित होकर बोले, “हनुमान तुमसे सीता की ख़बर लाने को कहा था। तुमने लंका में आग क्यों लगा दी?”

हनुमान शांत भाव से बोले, “प्रभो! जब तक हम जैसे आदिवासी पहाड़ों की गुफाओं, जंगलों और खुले आसमान के नीचे रह रहे हैं तब तक दुनिया में किसी को भी सोने के महल में रहने का अधिकार नहीं है। मुझे धरती पर हमेशा रहना है अतः मैं कभी मार्क्स, कभी मिन्ह, कभी लेनिन तो कभी माओ बनकर जनमानस तक ये संदेश पहुँचाता रहूँगा। सोने की लंका जलाकर मैंने इसकी शुरुआत की है प्रभो।“

हनुमान के इतना कहते ही श्रीराम ने उठकर उन्हें अपनी सीने से लगा लिया और सारी वानर सेना एक साथ बोल उठी, “कामरेड हनुमान की जय”। 

--------------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:57pm

बहुत बहुत शुक्रिया Abhinav Arun जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:55pm

बहुत बहुत धन्यवाद राज बुन्दॆली जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:55pm

बहुत बहुत शुक्रिया Baidyanath Saarthi जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:54pm

बहुत बहुत शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:54pm

बहुत बहुत धन्यवाद vandana जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:54pm

बहुत बहुत धन्यवाद  savitamishra जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:53pm

बहुत बहुत धन्यवाद  Shyam Narain Verma जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:53pm

बहुत बहुत शुक्रिया Meena Pathak जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:52pm

बहुत बहुत शुक्रिया  जितेन्द्र 'गीत' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on January 31, 2014 at 8:52pm

बहुत बहुत शुक्रिया अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी

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