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सुन्दर दृश्य उत्पन्न करती हैं

एक साथ जलती ढेरों मोमबत्तियाँ

 

भीड़ से घिरी उनकी रोशनी

कसमसाकर दम तोड़ देती है

 

वातावरण में घुले नारे

खंडहर में पैदा हुई अनुगूँज की तरह

कम्पन पैदा करते हैं

 

सर्द हवाएँ

काँटों की तरह चुभती हैं

 

अँधेरा गहराता जा रहा है 

___

बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 779

Comment

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Comment by coontee mukerji on January 7, 2014 at 6:15pm

आपकी रचना पढ़कर बगुत अच्छा लगा.....

सुन्दर दृश्य उत्पन्न करती हैं

एक साथ जलती ढेरों मोमबत्तियाँ.......एक आशा

भीड़ से घिरी उनकी रोशनी

कसमसाकर दम तोड़ देती है......एक निराशा

वातावरण में घुले नारे

खंडहर में पैदा हुई अनुगूँज की तरह

कम्पन पैदा करते हैं

 

सर्द हवाएँ

काँटों की तरह चुभती हैं......एक जिजिविषा एक संघर्ष
अँधेरा गहराता जा रहा है......एक चुभन.....आपकी रचनाएँ जाने कितने दुख दर्द लिये चलतेहै.....आशा  है हमें भविष्य में आपकी और रचनाएँ पढ़ने को मिलती रहेगी. सादर

 

 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on January 7, 2014 at 5:15pm

वातावरण में घुले नारे

खंडहर में पैदा हुई अनुगूँज की तरह

कम्पन पैदा करते हैं

 ..बहुत ही सुंदर भाव हैं आदरणीय ब्रिजेश जी ..मेरी तरफ से हार्दिक बधाई स्वीकार करें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 7, 2014 at 5:11pm

आदरणीय नीरज भाई , मोमबत्ती जला के विरोध करने के तरीके की असलियत बताती आपकई रचना के लिये आपको बधाई ॥

Comment by Shyam Narain Verma on January 7, 2014 at 3:01pm
बहुत सुंदर भाव, बधाई....

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