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मेरे खोये हुये लम्हात के ग़म को,

हकीकत के सीने में दफ़्न,

कुछ इच्छाओं की

उन धुँधली यादों को,

मेरे सपनों की लाशों को,

अब तक ढो रहा हूँ मैं…

 

कई दफे

ज़िन्दगी करीब से गुज़री,

मगर,

मैं ही जी न पाया..

आज मुझे लगता है

मैंने बहुत कुछ खो दिया,

पहले जो खोया है..

उसे याद कर,

और फिर,

उन्हीं यादों में खोकर,

 

एक लम्बा सफर तय किया,

मगर,

आज मुझे लगा

कि मैं वहीं हूँ!

वहीं हूँ जहाँ से चला था……

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 3, 2014 at 8:42pm

एक लम्बा सफर तय किया,

मगर,

आज मुझे लगा

कि मैं वहीं हूँ!

वहीं हूँ जहाँ से चला था……कभी कभी इन्सान की बहुत सी कोशिशों के बाद, यह मुकाम सामने आ खड़ा होता है

बधाई स्वीकारें आदरणीय शिज्जू जी

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on January 3, 2014 at 8:10pm

क्या बात है,,,,कमाल के भाव पिरॊये हैं आपनॆ सुन्दर रचना,,,,आपको बहुत बहुत बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 3, 2014 at 6:02pm

आदरणीय शिज्जू भाई , आंतरिक भावों को आपने सफलता पूर्वक शब्द दिया है , बहुत खूबसूरत रचना के लिये बधाई ॥

Comment by annapurna bajpai on January 3, 2014 at 5:50pm

ज़िंदगी मे कई बार कई मौकों पर ऐसा लगने लगता है कि हम अभी भी वही हैं जहां से चले थे , बधाई आपको आ0 शिजू जी इस सुंदर रचना प्रस्तुति के लिए । 

Comment by coontee mukerji on January 3, 2014 at 4:29pm

एक लम्बा सफर तय किया,

मगर,

आज मुझे लगा

कि मैं वहीं हूँ!

वहीं हूँ जहाँ से चला था…...अक्सर  होताहै जिंदगी.बहुत बहुत बधाई

Comment by Shyam Narain Verma on January 3, 2014 at 3:24pm
बहुत खूब , आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥
Comment by M Vijish kumar on January 3, 2014 at 2:04pm

बहुत खूब , श्रीमान जी आपको बधाई। 

Comment by Neeraj Neer on January 3, 2014 at 12:29pm

बहुत अच्छी रचना बधाई आपको .

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