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सूखे पत्तों के ढेर में

उम्मीद का

एक अंकुर फूटा

 

सूखे पत्ते मानो,

लाशें हैं

लाश हारे हुये लोगों की

लाश,

पराधीनता को किस्मत समझ

डर-डर के जीने वालों की

 

वो अंकुर है

भाग्योदय का

कीचड़ में उतर

परजीवियों को

साफ कर

समाज से

बीमारी हटाने वालों का

जो एक ज़र्रा था कल तक

आज

ज़माना उसकी चमक देख रहा है

 

अपनी नन्हीं आँखें खोल

मानो, कह रहा है

उठो

खुद को पहचानो,

खुद को बदलो,

आओ, नये युग की शुरुआत लिखें

 

 -मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 31, 2013 at 9:30pm

आदरणीय महिमा जी आपका आभार, आपको भी नववर्ष की शुभकामनायेंl  अतुकांत लिखने की कोशिश है, ये मेरी तीसरी अतुकांत रचना हैl 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 31, 2013 at 9:28pm

भाई जितेन्द्र जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 31, 2013 at 9:26pm

आदरणीया कुन्ती जी रचना को सराहने के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 31, 2013 at 9:25pm

आदरणीय गिरिराज सर रचना की सराहना के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूं


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 31, 2013 at 9:24pm

आपका आभार आदरणीया अन्नपूर्णा जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 31, 2013 at 9:24pm

आपका बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय श्याम नारायण जी

Comment by MAHIMA SHREE on December 31, 2013 at 8:10pm

बहुत खूब आदरणीय शिज्जू जी .पहलीबार आपकी अतुकांत रचना पढ़ रही हूँ .. बधाई और नव वर्ष की बधाई और  शुभकामनायें सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 30, 2013 at 11:31pm

बहुत सुंदर सकारात्मक भाव ली हुयी रचना , बधाई स्वीकारें आदरणीय शिज्जू जी

Comment by coontee mukerji on December 30, 2013 at 10:50pm

बहुत सुंदर...एक नयी सोच...

वो अंकुर है

भाग्योदय का

कीचड़ में उतर

परजीवियों को

साफ कर

समाज से

बीमारी हटाने वालों का

जो एक ज़र्रा था कल तक

आज

ज़माना उसकी चमक देख रहा है....हार्दिक बधाई.

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 30, 2013 at 9:07pm

आदरणीय शिज्जू भाई , बहुत सुन्दर बात कही , वाह भाई ॥ बहुत बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

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