For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

माँ – बाप (क्षणिकाएँ )

(1)

हमारे सपने लेते रहे आकार

बड़े और बड़े

महानगर की इमारतों की तरह

भव्य और विशाल

हमारे सपने

बढ़ते रहे

आगे और आगे..

कभी खुद से

कभी दूसरों से

आगे बढ़ जाने की चाह में 

माँ – बाप की ज़रूरतें

छोटी होती गईं 

टूट चुके गाँव के मकान के बाद 

दो वक्त की रोटी में सिमट गईं।

 

(2)

 

वे कभी नहीं आए

हमारे सपनों के बीच

मगर जुड़े रहे हमसे

अपनी दुआओं के साथ ।

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 686

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by नादिर ख़ान on December 28, 2013 at 1:22am
सच बात है, आदरणीया प्राची जी ओ बी ओ में बहुत कुछ सीखने को मिलता है।यहाँ बड़ी आत्मीयता से लोग समझाते भी है और हाथ पकड़कर कलम चलाना सिखा देते हैं..सच कहें तो इस मंच में आकर कई सालों बाद हमने दोबारा लिखना शुरू किया है बल्कि सीखना शुरू किया है, इसके लिए ओ बी ओ प्रबंधन की पूरी टीम का शुक्रिया तथा इस मंच से जुड़े तमाम दोस्तों एवं गुणीजनों का आभार ....

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 27, 2013 at 11:18am

आदरणीय नादिर जी 

बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी कथ्य है दोनों क्षणिकाओं का...

आ० सौरभ जी के इंगितानुरूप आपने प्रथम रचना को बहुत सुन्दर तरह से अलग क्षणिकाओं में प्रस्तुत किया..और पुनः सौरभ जी नें ज़रा सा आकार बदला और बस अब भाव और प्रस्तुति बहुत सुगढ़ता से उभर कर आ रही है..अन्यथा पहली वाली अभिव्यक्ति को क्षणिका के स्थान पर एक अतुकांत काव्य ही कहा जाता...

मंच पर उपलब्ध इस अवसर का भरपूर लाभ उठा प्रस्तुत अभिव्यति को सुगढ़ कर लेने के लिए आपको बहुत बहुत बधाई.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 1:07am

हार्दिक धन्यवाद, भाई जी.. हम सभी समवेत ही तो सीख रहे हैं .. .

Comment by नादिर ख़ान on December 27, 2013 at 12:52am

अदरणीय सौरभ जी आपने कविता मे चार चाँद लगा दिये। इस तरह तो हमने सोंचा ही नहीं था, इसीलिये तो आप लोग बुलंदियों मे हैं ।

Comment by नादिर ख़ान on December 27, 2013 at 12:48am

आदरणीय,

गिरिराज जी,अरुण शर्मा जी जितेंद्र गीत जी आशीष नैथानी जी, लक्ष्मण प्रसाद जी एवं 

आदरणीया,

मीना जी, सविता जी ,अन्नपूर्णा जी 

आप सबने प्रयास को सराहा, आप सभी का दिल की गहराईयों से शुक्रिया ।

आभार .........


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 27, 2013 at 12:47am

नादिर भाई, आपकी संलग्नता और आपकी कोशिशें वाकई मुग्ध कर देती हैं. मैं अपनी समझ भर आपकी पंक्तियों को एक रूप देने का प्रयास कर रहा हूँ. बताइयेगा ये क़वायद कैसी रही.

१.
सपने लेते रहे आकार
महानगर की इमारतों की तरह
बड़े और बड़े / भव्य और विशाल
सपने बढ़ते रहे
आगे.. से आगे
हमारी ज़रूरतें
पैर फैलाने लगीं

२.
माँ–बाप की ज़रूरतें
होती गईं छोटी.. और छोटी
गाँव के अधटूटे मकान में
महज़ दो वक्त की रोटी तक सिमट गईं ।

Comment by नादिर ख़ान on December 27, 2013 at 12:38am

आदरणीय सौरभ जी आपका बहुत आभार मुझे हमेशा ही आपके कोमेंट्स का इंतज़ार रहता है । आपने सही कहा पहले ये कविता इस रूप मे थी जिसे हमने पोस्ट करते समय कुछ शब्द जोड़ दिये जिसका मुझे भी बाद मे अफ़सोस रहा ।कृपया इन पंक्तियों को पढ़ कर कुछ सलाह दें ।

हमारे सपने लेते रहे आकार

बड़े और बड़े

महानगर की इमारतों की तरह

भव्य और विशाल

सपने बढ़ते रहे

आगे....

और आगे

हमारी ज़रूरतें

पैर फैलाने लगीं ....

 

माँ – बाप की ज़रूरतें

होती गईं छोटी

और छोटी 

टूट चुके गाँव के मकान के बाद 

दो वक्त की रोटी में सिमट गईं।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 11:27pm

भाई नादिर साहब, दोनों क्षणिकओं में ज़बर्दस्त की ऊँचाई है.

मैं इसलिये नहीं कह रहा हूँ कि माँ-बाप आदि कर देने से पाठक की भावुकता को एनकैश किया जाना आजकल फ़ैशन हो गया है. बल्कि इस लिये कि आपके बिम्ब और आपकी कहन ने वाकई कमाल किया है.
यह अवश्य है कि पहले वाली प्रस्तुति में दो भाव हैं और दोनों डिस्टिंक्ट हैं. उन्हे दो बंद के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता था.
बहुत-बहुत बधाई इस प्रस्तुति के लिए ..
सादर

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on December 24, 2013 at 10:24am

प्रभावी भाव पगी रचना के लिए हार्दिक  बधाई भाई नादिर खान जी 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on December 23, 2013 at 11:17pm

आगे बढ़ जाने की चाह में
माँ – बाप की ज़रूरतें
छोटी होती गईं
टूट चुके गाँव के मकान के बाद
दो वक्त की रोटी में सिमट गईं।

सुन्दर अभिव्यक्ति आदरणीय नादिर जी !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय सौरभ सर ओ बी ओ का मेल वाकई में नहीं देखा माफ़ी चाहता हूँ आदरणीय नीलेश जी, आ. गिरिराज जी ,आ.…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन आपकी प्रेरक प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ ।  इंगित बिन्दुओं पर…"
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"ओबीओ का मेल चेक करें "
5 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय सौरभ सर सादर नमन....दोष तो दोष है उसे स्वीकारने और सुधारने में कोई संकोच नहीं है।  माफ़ी…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"भाई बृजेश जी, आपको ओबीओ के मेल के जरिये इस व्याकरण सम्बन्धी दोष के प्रति अगाह किया था. लेकिन ऐसा…"
6 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय धामी जी स्नेहिल सलाह के लिए आपका अभिनन्दन और आभार....आपकी सलाह को ध्यान में रखते हुए…"
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय गिरिराज जी उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत आभार और नमन करता हूँ...आपसे आदरणीय नीलेश…"
7 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"आदरणीय नीलेश जी सर्व प्रथम रचना पटल पे उपस्थिति के लिए आपका हार्दिक आभार....वैसे ये…"
7 hours ago
Admin posted discussions
18 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ सड़सठवाँ आयोजन है।.…See More
19 hours ago
Ashok Kumar Raktale commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
" आदरणीय सुशील सरना जी सादर, जीवन के सत्य पर सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service