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नियम/अनुशासन

सब आम लोगों के लिए है

जो खास हैं

इन सब से परे हैं

उन पर लागू  नहीं होते

ये सब

ख़ास लोग तो तय करते हैं

कब /कौन/ कितना बोलेगा

कौन सा मोहरा

कब / कितने घर चलेगा

यहाँ शह भी वे ही देते हैं  

और मात भी

आम लोग मनोरंजन करते हैं   

आम लोगों का रेमोट

ख़ास लोगों के हाथों में होता है  

वे नचाते हैं

आम लोग नाचते हैं.....

मगर हालात

हमेशा एक जैसे नहीं होते

और न ही बदलने में वक़्त लगता

बस !! एक हल्का सा झटका

और खिसकने लगती है

पैरों के नीचे से ज़मीन

फिर जैसे मुट्ठी से रेत

जितना ज़ोर लगाओ

उतनी ही तेजी से फिसलते हैं हालात ..... 


(मौलिक एवं अप्रकाशित )

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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 16, 2014 at 10:56pm

आदरणीय नादिर खान भाई , वर्तमान स्थिति को बयान करती आपकी रचना के लिये आपको बधाइयाँ ॥

Comment by नादिर ख़ान on January 16, 2014 at 10:49pm

जनाब राम शिरोमणी जी हौसला अफजाई का शुक्रिया एवं आभार ।

Comment by नादिर ख़ान on January 16, 2014 at 10:46pm

अदरणीय सौरभ जी हौसला अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया। कृपया मार्गदर्शन बनाये रखें आज-कल मै  अपनी रचनाओं को लेकर काफी संशय/असमंजस की स्थिति मे रहता हूँ । आप लोगों की टिप्पणी एवं मार्गदर्शन से अपनी रचनाओं में सुधार लाने की कोशिश कर रहा हूँ ।आप सभी सुधी जनों का आभार । 

Comment by ram shiromani pathak on January 14, 2014 at 9:28pm

बहुत सुन्दर प्रस्तुति  आदरणीय  नादिर भाई जी। । हार्दिक बधाई आपको 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 14, 2014 at 9:10pm

इस कविता में तथ्य को सटीक ढंग से प्रस्तुत करने का सुगढ़ प्रयास हुआ है. सफलता भी मिली है.
आपका रचनाकर्म आश्वस्त करता है नादिर भाई.
शुभेच्छाएँ

Comment by नादिर ख़ान on January 10, 2014 at 9:16pm

आदरणीय शिज्जु जी,श्याम नारायण जी, जितेंद्र जी अदरणीया सविता जी,मीना पाठक जी आप सबका बहुत शुक्रिया आपने कोशिश को सराहा ।

आभार ...........

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 9, 2014 at 9:36pm

मगर हालात

हमेशा एक जैसे नहीं होते

और न ही बदलने में वक़्त लगता

बस !! एक हल्का सा झटका

और खिसकने लगती है

पैरों के नीचे से ज़मीन

फिर जैसे मुट्ठी से रेत

जितना ज़ोर लगाओ

उतनी ही तेजी से फिसलते हैं हालात ...........जीवन की हकीकत को बयां करती पंक्तियां

बधाई स्वीकारें आदरणीय नादिर साहब

Comment by Meena Pathak on January 9, 2014 at 12:36pm

मगर हालात

हमेशा एक जैसे नहीं होते

और न ही बदलने में वक़्त लगता

बस !! एक हल्का सा झटका

और खिसकने लगती है

पैरों के नीचे से ज़मीन

फिर जैसे मुट्ठी से रेत

जितना ज़ोर लगाओ

उतनी ही तेजी से फिसलते हैं हालात ..... 

बहुत सुन्दर ......... बधाई आप को | सादर 

Comment by Shyam Narain Verma on January 9, 2014 at 11:51am
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ..................
Comment by savitamishra on January 9, 2014 at 10:43am

बहुत बढ़िया

कृपया ध्यान दे...

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