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दिन भर के सफर का

थका हुआ सूरज, मानो..

ज़मीं की सेज़ पर,

लहरों के झूले में,

चाँदनी की चादर ओढ़े

सबकुछ भूल के,

सोने जा रहा हो,

लहराते हुये लहरो में,

मानो,

कह रहा है

मेरे दोस्तो

विदा, फिर मिलेंगे सुबह...

मैं चला

 

होती है रात विश्राम को,

थकान मिटाने को,

चलें सफर में

रात के साथ...

पिछला ग़म भुलाने को

चलो

सुबह एक नई शुरूआत करेंगे

 

 -मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 19, 2013 at 10:51am

होती है रात विश्राम को,

थकान मिटाने को,

चलें सफर में

रात के साथ...

पिछला ग़म भुलाने को

चलो

सुबह एक नई शुरूआत करेंगे

सुंदर भावों  से संजोयी, जीवन की नई सुबह में आशा की किरण, हृदय से बधाई स्वीकारें आदरणीय शिज्जू जी

 

Comment by savitamishra on December 19, 2013 at 10:27am

बहुत सुन्दर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 18, 2013 at 7:31pm

शिज्जू जी /मित्र

आपको एक नये  रूप में देखकर आश्चर्य भी हुआ और खुशी भी i

आपने भावो का निर्वाह बड़ी ख़ूबसूरती से किया i बधास्यी हो i

Comment by Maheshwari Kaneri on December 18, 2013 at 7:11pm

सुंदर प्रस्तुति पर  बधाई .

Comment by Shyam Narain Verma on December 18, 2013 at 5:48pm

इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई ......

Comment by Sanjay Mishra 'Habib' on December 18, 2013 at 5:44pm

बहुत सुन्दर रचना आदरणीय शिज्जू भाई जी..

सादर बधाई स्वीकारें...

Comment by Meena Pathak on December 18, 2013 at 2:00pm

चलो सुबह  नई एक शुरुआत करेंगे .....वाह बहुत सुन्दर रचना , बधाई आप को आदरणीय शिज्जू जी | सादर 

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