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ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

बहर-।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ ।ऽऽऽ
...
लिपट के आबशारों से तराने खो गए होंगे।
उतर के देवदारों से उजाले सो गए होंगे॥
...
जिन्हें मालूम है दुनिया मुहब्बत की इमारत है,
ग़ुज़र के मैकदे से भी वही घर को गए होंगे।
...
न परियों का फ़साना था न किस्से देवताओं के,
कहानी कौन सी सुन के सलोने सो गए होंगे।
...
उन्हीं की नींद उजड़ी है,उन्हीं के ख्वाब बिखरे हैं,
किसी की आँख के तारे चुराने जो गए होंगे।
...
ज़रा सी चाँदनी छू लें,सितारों की दमक देखें,
यही कहते,यही सुनते ज़माने हो गए होंगे।
...
-मौलिक व अप्रकाशित।
-15.12.2013

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Comment by Ravi Prakash on December 20, 2013 at 10:13am
इतना स्नेह और आशीर्वाद देने के लिए सभी सुधी जनों का कोटिश: धन्यवाद । कृपया मार्गदर्शन करते रहें।

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 20, 2013 at 1:28am

भाई रवि प्रकाशजी, दिल खुश कर दिया आपने !  मतला और आगे हर शेर दिल से वाह वाह ले रहा है.

सही है, ग़ज़लों में अश’आर की संख्या नहीं उनकी तासीर असर करती है.

बार-बार बधाई.. .

Comment by वेदिका on December 18, 2013 at 8:38pm

उन्हीं की नींद उजड़ी है,उन्हीं के ख्वाब बिखरे हैं,
किसी की आँख के तारे चुराने जो गए होंगे। ...... बहुत खूब भाव की प्रस्तुति हुयी है!

Comment by Tapan Dubey on December 17, 2013 at 5:26pm
न परियों का फ़साना था न किस्से देवताओं के,
कहानी कौन सी सुन के सलोने सो गए होंगे। वाह वाह


उन्हीं की नींद उजड़ी है,उन्हीं के ख्वाब बिखरे हैं,
किसी की आँख के तारे चुराने जो गए होंगे। क्या खूब कहा है भाई


रवि जी वैसे मैं गजल के व्याकरण के बारे में तो नहीं जानता पर फिर भी कहुगा कि क्या खूब लिखा है, बधाई। हर शेर पड़ कर अंदर से आवाज आ रही थी वाह वाह।
Comment by राजेश 'मृदु' on December 17, 2013 at 4:34pm

बढि़या गज़ल कही है आपने, सादर

Comment by विजय मिश्र on December 17, 2013 at 11:28am
रविजी , बहुत सुंदर . शुभकामनाएँ .
Comment by umesh katara on December 17, 2013 at 11:01am

वाहहहह शानदार गज़ल हुयी है भाई जी 
वाहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहहह

Comment by वीनस केसरी on December 17, 2013 at 3:12am

अच्छी ग़ज़ल है ... सभी शेर पसंद आये
मतला खूब हुआ है
दूसरे शेर में वही को वो सब करके देखिये शायद और पसंद आये

आख़िरी शेर स्पष्ट नहीं हो पा रहा है

Comment by ram shiromani pathak on December 16, 2013 at 10:56pm

उन्हीं की नींद उजड़ी है,उन्हीं के ख्वाब बिखरे हैं,
किसी की आँख के तारे चुराने जो गए होंगे।////////////वाह वाह बहुत खूब

बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल भाई जी हार्दिक बधाई आपको। .........  सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 16, 2013 at 8:44pm

आदरणीय रविप्रकाशजी बेहतरीन ग़ज़ल है दाद कुबूल करें

कृपया ध्यान दे...

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