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रात का दूसरा पहर 

दूर तक पसरा सन्नाटा और
गहरा कोहरा
टिमटिमाती स्ट्रीटलाइट
जो कोहरे के दम से
अपना दम खो चुकी है लगभग
कितनी सर्द लेहर लगती है
जैसे कोहरे की प्रेमिका
ठंडी हवा बन गीत गाती हो
झूम जाती हो
कभी कभी हल्के से
कोहरे को अपनी बाहों में ले
आगे बढ़ जाया करती
पर कोहरा नकचढ़ा बन वापस
अपनी जगह आ बैठता
ज़िद्दी कोहरा प्रेम से परे
बस अपने काम का मारा
सर्द रात में खुद का साम्राज्य
जमाये है हर तरफ
गली, दुकान, बड़े और
छोटे मकान, पेड़, पौधे
और सड़कों कि स्ट्रीटलाइट
पर जमा बैठा है
सारे लोगों को ठिठुरा कर
घर भेज दिया...

सोचती हूँ 

क़ाश ये कोहरे जैसा भी कुछ
मन में भी होता जो
मन की सड़को से
चिन्ताओं को ठिठुरा कर
वापस समय में विलीन कर देता
और मन को खुद से ढक कर
एक सुकून भरी रात तो देता मुझे
काश!!!.......

(मौलिक एव अप्रकाशित)

प्रियंका.......

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Comment

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Comment by Priyanka singh on December 16, 2013 at 10:36pm

आदरणीय डॉ आशुतोष जी आपकी सराहना से मेरा लिखने प्रयास सफल हुआ.……अपने मेरी रचना को अपने विचार दे कर पूर्ण कर दिया, बहुत बहुत आभार आपका ……

Comment by Priyanka singh on December 16, 2013 at 10:31pm

सराहना हेतु बहुत बहुत आभार आदरणीय राहुल देव जी ........

Comment by Priyanka singh on December 16, 2013 at 10:28pm

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय अरुण जी।

Comment by vijay nikore on December 16, 2013 at 3:49am

अभी आपकी कविता पुन: पढ़ी।

 

सार्थक चित्रात्मक बिम्बों से भरपूर आपकी रचना बहुत ही लुभावनी बन पड़ी है। आपको हार्दिक बधाई, आदरणीया प्रियंका जी।

 

सादर,

विजय

 

Comment by Neeraj Neer on December 15, 2013 at 8:51pm

बहुत ही सुन्दर भाव .. कोहरे और सर्दी के बहाने आपने अपनी दिल की बात कविता के माध्यम से सुन्दरता से प्रकट किया .. बहुत बधाई ..

Comment by MAHIMA SHREE on December 13, 2013 at 11:02pm

सुंदर भावाभिव्यक्ति आ. प्रियंका जी हार्दिक बधाई

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 13, 2013 at 9:31pm

बहुत सुन्दर भाव पिरोये हैं आपने जय हो

Comment by Satyanarayan Singh on December 13, 2013 at 6:13pm
आ, प्रियंका जी
शब्दो का कुशल संयोजन एवं कल्पना का काव्य विन्यास सभी मन को भा गए अतएव बधाई स्वीकार करें
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 13, 2013 at 9:09am

क़ाश ये कोहरे जैसा भी कुछ
मन में भी होता जो
मन की सड़को से
चिन्ताओं को ठिठुरा कर
वापस समय में विलीन कर देता
और मन को खुद से ढक कर
एक सुकून भरी रात तो देता मुझे
काश!!!.......

अंतर की सुंदर कल्पनाओं को बहुत खूबसूरती से चित्रित किया है, बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रियंका जी

Comment by vijay nikore on December 13, 2013 at 9:03am

//क़ाश ये कोहरे जैसा भी कुछ
मन में भी होता जो
मन की सड़को से
चिन्ताओं को ठिठुरा कर
वापस समय में विलीन कर देता//

कोहरे के माध्यम कल्पना को ऊँची उड़ान दी है आपने। बधाई आदरणीया प्रियंका जी।

 

सादर,

विजय निकोर

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