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ग़ज़ल - (रवि प्रकाश)

हमारे नाम का चर्चा हुआ होगा सितारों में।
ज़माना खोजता होगा हमें भी बेसहारों में॥
.
किसी ने हाथ छोड़ा तो बढ़ा के रुक गया कोई,
हमारी तंगहाली भी नज़ारा थी नज़ारों में।
.
छुपाते हैं जिसे दिल में उसे ही छीन लेता है,
न जाने कौन क़ातिल है हमारे राज़दारों में।
.
न मुड़ के देखती है फिर लहर जो लौट जाती है,
बड़ी गहरी उदासी है समंदर के किनारों में।
.
रिवाज़ों के,समाजों के अजब रंगीन किस्से हैं,
वही जिनसे अदावत थी जमा हैं सोगवारों में।
.
'रवी' अपनी ज़ुबानी ये कहानी क्या बयाँ होगी,
वही समझे,वही जाने लुटा हो जो बहारों में॥
.
-मौलिक एवं अप्रकाशित।
-04.12.2013

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on December 6, 2013 at 9:48pm

बेहतरीन ग़ज़ल के लिए बधाईयाँ..............

छुपाते हैं जिसे दिल में उसे ही छीन लेता है,
न जाने कौन क़ातिल है हमारे राज़दारों में।

वाह, वाह, वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

Comment by Ravi Prakash on December 6, 2013 at 9:30pm
Thanks Salim Raza ji.
Comment by SALIM RAZA REWA on December 6, 2013 at 9:21pm

ravi prakash ji achhi gazal hai matle ke lie mubark bad

Comment by Ravi Prakash on December 6, 2013 at 6:10pm
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद अरुन जी।
Comment by Ravi Prakash on December 6, 2013 at 6:09pm
आ॰ संदीप जी, धन्यवाद।
Comment by अरुन 'अनन्त' on December 6, 2013 at 3:05pm

आदरणीय रविप्रकाश भाई वाह बहुत खूबसूरत अशआर हुए हैं इस सुन्दर उम्दा ग़ज़ल के लिए दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 6, 2013 at 2:17pm

क्या बात है आदरणीय जोरदार ग़ज़ल कही है आपने दिली दाद हाजिर है

Comment by Ravi Prakash on December 6, 2013 at 1:48pm
सराहना तथा उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 6, 2013 at 7:43am

बहुत बढ़िया भाई रविप्रकाश जी बेहतरीन ग़ज़ल है दाद कुबूल फरमायें

Comment by coontee mukerji on December 6, 2013 at 1:01am

न मुड़ के देखती है फिर लहर जो लौट जाती है,
बड़ी गहरी उदासी है समंदर के किनारों में।...........क्या बात है.
.

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