For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

          नदी पर काठ  का एक छोटा किन्तु  मजबूत सेतु बना था  I  उसके नीचे माधवी झाड़ियो से रंग-बिरंगे फूल चुन रही थी  I  अचानक उसने विटप की  ओर  देखा  और  कहा - ' हमारे तुम्हारे  गाँव  के बीच यही एक नदी है जिस पर यह सेतु है I इसका मतलब समझे ?'

'नहीं----' विटप ने हंसकर कहा I

'बुद्धू ---- दो दिलो को ऐसा ही सेतु आपस में मिलाता है I ' -माधवी ने फूलो का ढेर लगाते हुए कहा  ' और----- वह  सेतु है विवाह i ' माधवी ने थोडा रूककर फिर कहा -' विटप, वहा सेतु पर देखो बीच में जहा खंजन पक्षी बैठा है I  मेरे मन में कई बार होता है वहां से छलांग लगाऊ और नदी में देर तक  त्तैरू I खूब नहाऊ, मस्ती करू i पर गाँव में यह संभव नहीं, जब छोटी थी तब नहाती थी I  '

'हाँ , तुमने ठीक कहा , पर अब हमें चलना चाहिए I '

'मै तो अपने गाँव में हूँ , तुम्हे उस पार जाना है  I  अच्छा  यह बताओ फूल अच्छे होते है या उनकी सुगंध  ?'-माधवी ने कहते कहते  ढेर सारे फूल विटप के चेहरे पर मल दिए I  विटप सुरभित हो गया I  उसने कहा -' दोनों सुन्दर होते है I पर फूलो के जाने के बाद  भी सुगंध वातावरण में कुछ  देर तक बनी रहती  है I  अच्छा आज की बाते ख़त्म  I तुम्हारे घरवाले तो राजी है अब मुझे अपनी माँ  को पटाना है I '

'और पिता जी को --?'- माधवी ने चिंता से पूछा I

'उन्हें नहीं वे तो माँ की मुठ्ठी में है  I  जैसे मै तुम्हारी मुठ्ठी  में--- ' 

'धत -----'-माधवी शर्मा गयी  I 

'शरमाओ  मत मै एक सप्ताह में  मुहूर्त निकलवाकर आता ------'

' ये--- भा---ई , इश्किया  गए हो का ? हार्न सुनायी नही दिया , कब से बजाए जा रहे है I '

          विटप चौंका  I उसकी विचार श्रंखला टूट गयी I उसने उस पोटली की ओर देखा जो माँ ने अपने होने वाली बहू के लिए भेजा था I  वह सेतु पार कर माधवी  के गाँव पहुँच चुका था I  चारो ओर सन्नाटा छाया था I एक दो कुत्ते  इधर -उधर आवारागर्दी  कर रहे थे I  कुछ  मजदूरों  ने उसे लापरवाही से देखा और अपने काम में लग गए I माधवी के घर पर पहुँच कर विटप को कुछ अजीब सा लगा I बरोठे में कुछ स्त्रिया और एक दो पुरुष बैठे थे I  माधवी के पिता ने विटप को  देखा तो फूट-फूट कर रो पड़ा -' भैया तुमने आने में देर कर दी I  बिटिया सामूहिक बलात्कार का शिकार हो गयी  I  उसने सेतु में दुपट्टा  बांधकर  वही  से  कूदकर अपनी जान  दे दी I  लाश  तक का पता नहीं चला I '

          विटप के काटो तो खून नहीं I  माँ की  दी पोटली  छूटते छूटते बची I वह न हंस सका न रो सका I  उसी अवस्था में वह कुछ देर वही खड़ा रहा I  फिर वह उलटे पाँव लौट पड़ा I उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी I  धीरे-धीरे चलकर वह्सेतु  तक पहुंचा I  उसे माधवी का नीला दुपट्टा  सेतु के बीच में उसी स्थान पर बंधा दिखाई दिया जहा उस दिन खंजन पच्छी  बैठा था I  तभी उसे अपनी गाँव की ओर से गाते  हुए आती स्त्रियों का स्वर  सुनायी दिया I उसने तुरंत माधवी का दुपट्टा  खोला I  उसमे माँ की दी हुयी पोटली बांधी और उसे नदी में फेंक दिया I ग्रामीण  स्त्रिया  समीप  आती  जा  रही थी उनके स्वर धीरे धीरे तेज हो रहे थे I अचानक  विटप बुदबुदाया -' माधवी ! तुम माधवी लता  के समान इस विटप से  लिपटना चाहती थी पर दुनिया को यह गवारा न हुआ I मै तुम्हारी यह इच्छा जरूर  पूरी करूंगा I ' इतना  कहकर वह जोर से हवा में उछला I अगले ही पल वह नदी की विशाल जलराशि  में समा गया  I  ग्रामीण स्त्रियों के स्वर स्पष्ट उभर कर हवा में तैरे -

                                      ' चुनि चुनि फुलवा लगाई बड़ी रास I  उड़ गए फुलवा  रह गयी बास II '

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

ओ बी ओ  के सभी मित्रो  को समर्पित

 

 

Views: 1005

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2013 at 5:53pm

अनंत जी

आपके  विचार सदैव मेरे लिए विशेष प्रेरक होते है i

कोटिशः आभार  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2013 at 5:50pm

नीलम उपाध्याय जी

आपके  प्रोत्साहन का शतशः आभार i

Comment by Neelam Upadhyaya on December 4, 2013 at 5:43pm

आदरणीय गोपाल जी, रचना अंतर्मन को बेध गयी है . ऐसा कब होगा जब हमर बेटियां अपने समाज में निर्विघ्न विचरण कर कर पाएंगी.

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 4, 2013 at 5:10pm

आदरणीय गोपाल सर क्या कहूँ जिस घटना का जिक्र आपने किया है वह घटना ही ह्रदय को उद्देलित कर जाती है जब भी कुछ ऐसा पढ़ता हूँ या सुनता हूँ केवल मौन हो जाता हूँ. आज भी मौन हूँ

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2013 at 2:25pm

विजय मिश्र जी

आपके प्रोत्साहन के लिए  आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 4, 2013 at 2:23pm

गीतिका जी

आपको आभार i  लघु  कथा या कथा होने से कोई फिर्क नहीं पड़ता  i  आपको कथ्य अच्छा लगा  i इतना ही संतोषप्रद है i

Comment by विजय मिश्र on December 4, 2013 at 1:23pm
हम दूसरों के अपराध को अपनी कुंठा बना कबतक स्वेम को दण्डित करते रहेंगे |जीवन की सभी समस्याओं का हल जीवन में है ,मरण तो इति है |स्वछन्द और निर्बिघ्न जीवन आजकी बेटियों के लिए स्वप्नतुल्य हो गया है | सुंदर वातावरण की रचना कर उसमें से छुपी आग की लपटों को दिखाने के लिए धन्यवाद श्रीगोपालजी |
Comment by वेदिका on December 4, 2013 at 12:14pm

यह कथा है अथवा लघुकथा इस बिन्दु पर गुनिजन ही कहें!
आपकी रचना मन को मथ गयी, समाज के उस पहलू से अवगत करा गयी जिसका फल निरपराध होते हुये भी भोगना पड़ता है| खैर ज़िंदगी रहती तो प्रेम से अपनाई भी जाती, लेकिन ......:(

सादर!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"  सरसी छंद  : हार हताशा छुपा रहे हैं, मोर   मचाते  शोर । व्यर्थ पीटते…"
4 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ रोहिंग्या औ बांग्ला देशी, बदल रहे परिवेश। शत्रु बोध यदि नहीं हुआ तो, पछताएगा…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"जय-जय, जय हो "
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174 in the group चित्र से काव्य तक
"स्वागतम"
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Dec 14
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Dec 14
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Dec 13
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Dec 13

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Dec 12
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service