For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अमर पुष्प
कुछ बातें ऐसी थीं
कुछ ठहरी हुई कुछ चंचल
कुछ कही हुई
कुछ अनकही.

कुछ सपने
पलकों में थे बिखरे
ख्यालों की लम्बी दरिया में
कुछ बातें थी उपली.

मैं तुम्हें देखती थी
मुस्काते नयनों से
तुम भी देखते थे
पर रहते थे मौन.

तुम्हारे आस-पास
बन तितली उड़ती रहती
तुम्हारे हृदय का पट न खुला
मैं पहेली बूझ न सकी.

तुम्हारी चुप्पी ने
मेरे कितने सवालों को उलझाया
एक डोर सुलझा न सकी
मैं और उलझती चली गयी.

दिन रात मन में
कितने प्रश्न उभरते
और मेरी कितनी ही शामें
उथले जल में डूबती उतराती रहीं.

अमर लता सी उतर रही थी
मूक प्रेम मेरे कानन में
ज़िंदगी के सुनहरे पुष्प
खिलने लगे सूने आंगन में.

मन की व्यग्रता
प्रति पल थी बढ़ती
तब मैंने देखा तुमको
लहरों को गिनते हुए अविरल -
मैं भी तो
गिन रही थी कुछ पल
अपनी इन उंगलियों में सजल.

रात के सन्नाटे में
एक अमर पुष्प कब खिला
तुम जान न सके
दिन के उजाले में
कुछ साये थे अनछुए
कुछ रहस्य हो रहे थे उज्ज्वल.

मन के प्राचीर में
प्रेमदूत ने दी जब दस्तक
तुम्हारे हृदय में
एक हलचल सा मचा
और उतर आया चाँद
तुम्हारी सफेद हथेली पर.

समय ने बदला करवट
वसंत के संग होने लगी
धूप-छाँव की अठखेलियाँ
जीवन संगीत लहराने लगा -
विटप से लिपट गयी अमरलता
और
खिल उठा जीवन का ‘अमर पुष्प’.
(मौलिक तथा अप्रकाशित)

Views: 718

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on December 1, 2013 at 11:13am

//तुम्हारे आस-पास 
बन तितली उड़ती रहती
तुम्हारे हृदय का पट न खुला
मैं पहेली बूझ न सकी.//    ............. सारी कविता में आपने ऐसे ही सुंदर भाव पिरोए हैं। हार्दिक बधाई।

सादर,

विजय निकोर

Comment by Neeraj Neer on December 1, 2013 at 9:50am

खिल उठा जीवन का ‘अमर पुष्प’... बहुत सुन्दर अंत , बहुत सुन्दर भावों से परिपूर्ण सुन्दर रचना के लिए बधाई आदरणीया ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 1, 2013 at 6:42am

आदरनीया कुंती जी , बहुत खूबसूरत रचना हुई है !!! आपको तहे दिल से बधाई !!!!!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on December 1, 2013 at 12:56am

खिल उठा जीवन का ‘अमर पुष्प’...

 सुन्दर भाव समाहित खूबसूरत रचना , अंत पूर्ण सकारात्मकता लिए हुए, बधाई स्वीकारें आदरणीया कुंती जी

Comment by ram shiromani pathak on November 30, 2013 at 9:09pm

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया कुन्ती  जी    .. हार्दिक बधाई आपको ।।।।  सादर 

Comment by coontee mukerji on November 30, 2013 at 4:33pm

डॉ गोपाल जी,श्याम जी, मेरा हार्दिक आभार.आज कल हर तरफ इतने मारा मारी हो रही है कि जी करता है कुछ देर प्रेम की सुंदर कानन में बैठ ली जाय.उसी प्रेम कानन का पुष्प मैं ने अपने अतीत के आंगन से चुनी है.

सादर

कुंती

Comment by coontee mukerji on November 30, 2013 at 4:27pm

राजेश जी,( उतर आया चाँद सफ़ेद हथेली पर) यहाँ सांकेतिक भाषा का प्रयोग हुआ है.

सफ़ेद हाथ-खाली हाथ

चाँद प्रेम का प्रतीक है.नायिका कह रही है नायक से कि मेरी प्रेम का संदेश जब प्रेमदूत तुम तक पहुँचाया तब तुम भी उस आकर्षण से बच न सके तुम्हारा रिक्त हृदय में भी प्रेम उतर आया........प्रेम के कई रंग होते हैं राजेश जी आशा है आप की जिज्ञासा शांत हो गयी होगी.

धन्यवाद.

Comment by राजेश 'मृदु' on November 30, 2013 at 2:19pm

आनंद आ गया आदरेया, बहुत ही आनंद पर एक बात नहीं समझा 'और उतर आया चाँद तुम्हारी सफेद हथेली पर'.   हथेली सफेद क्‍यों थी....यह नहीं बूझ पाया,  सादर

Comment by Shyam Narain Verma on November 30, 2013 at 11:44am
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 30, 2013 at 11:08am

माननीया

क्या बात है ----?

एक ही कविता में इतने उतर-चढाव

और अंत  कितना खूबसूरत ?

प्रेम दूत, अमरलता और अमरपुष्प i  लाजवाब i  बधाई हो माननीया i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
23 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
23 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
yesterday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service