For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ढूँढती है एक चिड़िया

इस शहर में नीड़ अपना

आज उजड़ा वह बसेरा

जिसमें बुनती रोज सपना

 

छाँव बरगद सी नहीं है

थम गया है पात पीपल

ताल, पोखर, कूप सूना

अब नहीं वह नीर शीतल

 

किरचियाँ चुभती हवा में

टूटता बल, क्षीण पखना

 

कुछ विवश सा राह तकता

आज दिहरी एक दीपक

चरमराती भित्तियाँ हैं

चाटती है नींव दीमक

 

आज पग मायूस, ठिठके

जो फुदकते रोज अँगना

 

भीड़ है हर ओर लेकिन

पथ अपरिचित, साथ छूटा

इस नगर के शोर में अब

नेह का हर बंध टूटा

 

खोजती है एक कोना

फिर बनाये ठौर अपना

 

-  बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 853

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on November 24, 2013 at 7:59am

आदरणीय गिरिराज जी मैं अपनी रचनाओं में छूट लेने की प्रथा से बचने का ही प्रयास करता हूँ. इस शब्द पर मैं बहुत देर तक अटका रहा. पूरी संतुष्टि के बाद ही इसे इस रूप में प्रयोग किया. ये एक आंचलिक शब्द है और आंचलिक शब्द की वर्तनी क्षेत्र विशेष के उच्चारण से निर्धारित होती है. कहीं कहीं डेहरी भी बोलते हैं. जिस पंक्ति में ये शब्द प्रयोग हुआ है मैंने पहले उस शब्द से ही उस पंक्ति की शुरुआत की थी लेकिन शिल्प में मेरा उच्चारण सही न बैठने के कारण इसका स्थान बदला कर वर्तमान जगह पर प्रयोग किया गया.

यहाँ मैं अपनी सोच को स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि देशज शब्द की वर्तनी उच्चारण पर निर्भर करती है.

जहाँ तक शहर या बहर जैसे शब्दों की बात है तो ये विवाद भाषा जनित है. हिंदी में शहर ही लिखा भी जाता है और बोला भी जाता है. उर्दू में क्या बोलते हैं या लिखते हैं इससे हिंदी में वर्तनी निर्धारण नहीं हो सकता. ग़ज़ल के नाम पर हिंदी का गला उर्दू उच्चारण के शोर से रूंधने की कोशिशों का मैं विरोध करता हूँ. हर भाषा की अपनी विशेषता होती है पर एक भाषा की दखल दूसरी भाषा तक नहीं पहुँचने देनी चाहिए.

फिर कहूँगा देशज बोलियाँ हिंदी का अंग हैं. उनकी वर्तनी उच्चारण के आधार पर निर्धारित होती है और तदनुसार छूट की भी सीमा है. उर्दू या किसी भी भाषा के शब्द हिंदी ने ग्रहण किये हैं, तो जिस रूप में ग्रहण किये हैं, उसी रूप में स्वीकार होंगे वहां छूट की सम्भावना नहीं है. 'मेरे' को 'मिरे' नहीं ही स्वीकार किया जा सकता.

सादर!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 24, 2013 at 6:15am

आदरणीय नीरज भाई , मेरा उद्देश्य त्रुटि निकानला नही है , न ही मै इस लायक हूँ ! मेरे पूछ्ने के पीछे दो कारण है ---

1 -  आप अब ऐसी जगह है जहाँ आपका लिखना दूसरे नव लिखने वालों  के लिये रास्ता बना देता है , लोग आपका अनुसरण कर सकते हैं , मै तो आपकी रचना मे कही बात समझ के संतुष्ट हूँ !!!!

2- जब उर्दू के शब्द जो कि खूब प्रचलित भी है , जैसे शहर , जहर आदि फिर भी चूंकि  असली शब्द शह्र और ज़ह्र है , शहर और जहर का उपयोग मान्य नही है ! तो हम अपनी हिन्दी भाषा के शब्दों प्रति क्यों इमानदारी न रखें !!! दिहरी भी मुझे वैसे ही स्वीकार है जैसे देहरी !!!! लेकिन पगडंडी बनेगी तो लोग उसपे चलेंगे ज़रूर !!!!

Comment by बृजेश नीरज on November 24, 2013 at 12:12am

आदरणीय नादिर साहब आपका बहुत बहुत आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 24, 2013 at 12:12am

आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 24, 2013 at 12:05am

आदरणीय गिरिराज जी आपका हार्दिक आभार!

आदरणीय आपने सही सोचा! दिहरी लिखने में क्या समस्या है? इस शब्द पर मैं करीब २ घंटे अटका रहा. हर बार उच्छारण में शब्द इसी रूप में आ रहा था, इसलिए इस रूप में लिखा त्रुटि हो तो बताएं!

Comment by बृजेश नीरज on November 23, 2013 at 11:54pm

आदरणीय सुनील जी आपका हार्दिक आभार! मेरी रचना पर आपकी उपस्थिति देखकर मन प्रसन्न हो गया!

Comment by बृजेश नीरज on November 23, 2013 at 11:51pm

आदरणीया वंदना जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 23, 2013 at 11:51pm

आदरणीय राहुल भाई आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on November 23, 2013 at 11:50pm

आदरणीय श्याम नारायण जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by नादिर ख़ान on November 23, 2013 at 11:02pm

भीड़ है हर ओर लेकिन

पथ अपरिचित, साथ छूटा

इस नगर के शोर में अब

नेह का हर बंध टूटा

 

खोजती है एक कोना

फिर बनाये ठौर अपना....

सुंदर ..सुंदर ... अतिसुन्दर ... 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
8 hours ago
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
17 hours ago
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday
Shyam Narain Verma commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service