For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हँसते रहे रोते रहे |

गूंजती थी जब खमोशी, हादसे होते रहे |

रात जागी थी जहां पर दिन वहीँ सोते रहे ||

 

अनमने से भाव थे वह अनमनी सी थी नजर

अनमने सिंगार पर ही मुग्ध हम होते रहे ||

 

कौंध कर बिजली गिरी वसुधा दिवाकर भी डरा,

कुंध तनमन क्रोध संकर बीज हम बोते रहे ||

 

भावना विचलित हुई जब चीर नैनो से हटा,

चार अश्रु गिर धरा पर माटी में खोते रहे ||

 

पीर बढती ही गई जब भावना के वेग से,

हम किनारे पर रहे हर शब्द को धोते रहे ||

 

गुम गए फिर शब्द सारे बह गए नद नीर में,

तब जनाजे का उठा छः गज कफ़न ढोते रहे ||

 

अब नजर आती नहीं है, घुप अँधेरे में किरण,

बैठकर तनहा हमी, हँसते रहे रोते रहे ||

 

 

मौलिक/अप्रकाशित.

 

Views: 837

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 26, 2013 at 1:37pm

आदरणीय जीतेन्द्र 'गीत'  जी, आदरणीया गीतिका 'वेदिका' जी आदरणीय वजय मिश्र साहब आदरणीया डॉ. प्राची सिंह जी आप सभी का अतिशय आभार.

आदरणीया गीतिका जी, मेरी यही कमजोरी है मैं सब सीधे सीधे ही लिखता हूँ और यही  आपके द्वारा इंगित मिसरे में भी है- कभी कभी बच्चों का क्रोध भी माता पिता को हैरत में डाल देता है.सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 26, 2013 at 10:51am

आ० अशोक रक्ताले जी 

मर्मस्पर्शी ग़ज़ल 

सभी शेर अन्तः तक पहुँचने की काबिलियत रखते हैं... 

पर इस शेर नें बहुत गहरे छुआ 

अनमने से भाव थे वह अनमनी सी थी नजर

अनमने सिंगार पर ही मुग्ध हम होते रहे ||

बहुत सुन्दर प्रस्तुति 

हार्दिक शुभकामनाएँ 

Comment by विजय मिश्र on November 22, 2013 at 4:58pm
थोड़ा नैराश्य लिए मगर सुंदर भावों का समायोजन , मन को छूने वाले कुछ शे'र भी गहराई लिए हुए है |बधाई रक्तालेजी
Comment by वेदिका on November 21, 2013 at 11:52pm

अनमने से भाव थे वह अनमनी सी थी नजर

अनमने सिंगार पर ही मुग्ध हम होते रहे ||,,,,,लाजवाब शेअर रहा! 

कौंध कर बिजली गिरी वसुधा दिवाकर भी डरा,

कुंध तनमन क्रोध संकर बीज हम बोते रहे ||,,,,मे पहला मिसरा मेरी समझ के बाहर रहा! 

खूबसूरत गज़ल पर बधाई लीजिये!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 21, 2013 at 11:32pm

पीर बढती ही गई जब भावना के वेग से,

हम किनारे पर रहे हर शब्द को धोते रहे......यह शेर बहुत पसंद आया

आदरणीय अशोक जी , बेहतरीन गजल पर दिली दाद कुबूल करें

 

Comment by Ashok Kumar Raktale on November 21, 2013 at 10:23pm

आदरणीय निलेश जी, आदरणीय अरुण जी आदरणीय संदीप भाई आदरणीय गिरिराज भंडारी साहब आदरणीय रमेश कुमार चौहान जी आप सभी का बहुत बहुत आभार!

आदरणीय निलेश जी सादर आपको लय भंग लग रही है तो होगी. यह सम्भव है.आभार आपने इतना गौर किया. पुनः आभार.

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 21, 2013 at 8:25pm

आदरणीय जालवाब गजल पेश करने के लिये दाद कबूल करे ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 21, 2013 at 5:31pm

आदरणीय अशोक भाई , बहुत कामयाब ,  बहुत लाजवाब गज़ल कही है आपने , ढेरों बधाई !!!

अब नजर आती नहीं है, घुप अँधेरे में किरण,

बैठकर तनहा हमी, हँसते रहे रोते रहे || --------- लाजवाब शे र !!!

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 21, 2013 at 3:29pm

क्या बात है सर जी बहुत दिनों के बाद आपकी कोई रचना पढ़ रहा हूँ

और बस मजा ही आ गया

इस शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई हो

सादर

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 21, 2013 at 3:24pm

आदरणीय रक्त्ताले जी बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल कही है सभी शेर अच्छे बन पड़े हैं दिली दाद कुबूल फरमाएं.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service