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ग़ज़ल : जब से हुई मेरे हृदय की संगिनी मेरी कलम

बह्र : २२१२ २२१२ २२१२ २२१२

 

जब से हुई मेरे हृदय की संगिनी मेरी कलम

हर पंक्ति में लिखने लगी आम आदमी मेरी कलम

 

जब से उलझ बैठी हैं उसकी ओढ़नी, मेरी कलम

करने लगी है रोज दिल में गुदगुदी मेरी कलम

 

कुछ बात सच्चाई में है वरना बताओ क्यों भला

दिन रात होती जा रही है साहसी मेरी कलम

 

यूँ ही गले मिल के हैलो क्या कह गई पागल हवा

तब से न जाने क्यूँ हुई है बावरी मेरी कलम

 

उठती नहीं जब भी किसी का चाहता हूँ मैं बुरा

क्या खत्म करने पर तुली है अफ़सरी, मेरी कलम

-----

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by गिरिराज भंडारी on November 17, 2013 at 7:04am

आदरणीय धर्मेन्द्र भाई , बहुत शानदार गज़ल कही है !!!!

उठती नहीं जब भी किसी का चाहता हूँ मैं बुरा

क्या खत्म करने पर तुली है अफ़सरी, मेरी कलम --!! बेहतरीन शे र !!! बधाई !!

Comment by वीनस केसरी on November 17, 2013 at 3:22am

बहुत खूब भाई अच्छी ग़ज़ल कही है
ढेरो मुबारकबाद

Comment by Neeraj Neer on November 16, 2013 at 8:08pm

उठती नहीं जब भी किसी का चाहता हूँ मैं बुरा

क्या खत्म करने पर तुली है अफ़सरी, मेरी कलम

----- बहुत बढियां ..

Comment by Abhinav Arun on November 16, 2013 at 6:30pm

यूँ ही गले मिल के हैलो क्या कह गई पागल हवा

तब से न जाने क्यूँ हुई है बावरी मेरी कलम....वाह श्री धर्मेन्द्र जी वाह आनंदित हूँ इस प्रस्तुति पर कई फलक है हर शेर अलग अंदाज़ का बधाई बहुत बहुत

Comment by विजय मिश्र on November 16, 2013 at 5:51pm
"उठती नहीं जब भी किसी का चाहता हूँ मैं बुरा
क्या खत्म करने पर तुली है अफ़सरी, मेरी कलम |"

यहाँ दिल को छू गयी आपकी कलम , बेहद खूबसूरती से मनके भाव रखे हैं धर्मेन्द्रजि . बधाई
Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 16, 2013 at 4:36pm

आखिरी वाला शेर बहुत उम्दा है 

बधाई आपको 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 16, 2013 at 3:49pm

बेहतरीन 

Comment by Meena Pathak on November 16, 2013 at 12:00pm

बहुत सुन्दर गज़ल हार्दिक बधाई आप को 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on November 16, 2013 at 11:37am

उठती नहीं जब भी किसी का चाहता हूँ मैं बुरा

क्या खत्म करने पर तुली है अफ़सरी, मेरी कलम |

वाह वाह सुन्दर ग़ज़ल आदरणीय धर्मेन्द्र जी... 
दिली दाद क़ुबूल कीजिये !!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 16, 2013 at 11:21am

ग़ज़ल में आबद्ध  दस्ताने कलम  अच्छी  रचना है  i  कलम के हुनर हजारो है  i  आगे भी  अधिक की उम्मीद करता हूँ  i  सस्नेह  i

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