For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

उसकी बातों पे मुझे आज यकीं कुछ कम है
ये अलग है कि वो चर्चे में नहीं कुछ कम है

जबसे दो चार नए पंख लगे हैं उगने
तबसे कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है

मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है

मुल्क तो दूर की बात अपने ही घर में देखो
'कहीं कुछ चीज जियादा है कहीं कुछ कम है'

देख कर जलवा ए रुख आज वही दंग हुए
जो थे कहते तेरा महबूब हसीं कुछ कम है

कुछ तो अनबन है ज़रूर उसकी, खुदा से 'राणा'
आज सजदे में झुकी उसकी ज़बीं कुछ कम है

मौलिक तथा अप्रकाशित

Views: 1463

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on November 13, 2013 at 7:42am
वीनस भाई ग़ज़ल पसंद करने के लिए शुक्रिया|
Comment by vandana on November 13, 2013 at 6:45am

वाह !!! सर बहुत खूब 

मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है

मुल्क तो दूर की बात अपने ही घर में देखो 
'कहीं कुछ चीज जियादा है कहीं कुछ कम है'

कुछ तो अनबन है ज़रूर उसकी, खुदा से 'राणा'

आज सजदे में झुकी उसकी ज़बीं कुछ कम है

Comment by Nilesh Shevgaonkar on November 10, 2013 at 10:45pm

बहुत ख़ूब .. बधाई 

Comment by vijay nikore on November 10, 2013 at 2:26pm

इस खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई, आदरणीय राणा प्रताप जी।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 10, 2013 at 12:11pm

आदरणीय राणाप्रताप जी इस सुंदर ग़ज़ल के इस शेर के लिए बिशेष रूप से बधाई स्वीकारें 

मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है..सादर बधाअयीए के साथ 

Comment by savitamishra on November 9, 2013 at 4:10pm

bahut khubsurat

Comment by annapurna bajpai on November 9, 2013 at 2:02pm

वाह !! आ0 राणा प्रताप जी सुंदर गजल , बहुत बधाई आपको । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 9, 2013 at 1:24pm

आदरणीय राणा भाई जी वाह अत्यंत सुन्दर बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने सभी अशआर बेहद पसंद दिली दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by Sushil.Joshi on November 9, 2013 at 1:11pm

वाह वाह... बहुत जानदार गज़ल कही है आ0 राणा प्रताप जी....हार्दिक बधाई...... एक एक शेर बेहद खूबसूरत है......


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 8, 2013 at 8:51pm

जबसे दो चार नए पंख लगे हैं उगने 

तबसे कहता है कि ये सारी ज़मीं कुछ कम है...............नया नया उड़ने वालों का मिजाज़, बहुत सुन्दर 

मैं ये कहता हूँ कि तुम गौर से देखो तो सही
जो जियादा है जहां वो ही वहीँ कुछ कम है................. बहुत गहराई में उतर ये भाव चुन कर शेर में ढाले हैं ..बहुत खूब!

हार्दिक बधाई इस गहन अर्थ संजोती सुन्दर ग़ज़ल पर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service