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राहुल और निधि कब एक दूसरे के हो गये पता ही नही चला | दोनों ने साथ साथ जीने मरने की कसमें खायीं थीं । निधि के घरवाले इस शादी के सख्त खिलाफ थे, किन्तु निधि की जिद के आगे उनकी एक न चली और अंतत: उन्हें शादी के लिए अपनी रज़ामंदी देनी ही पड़ी।

निधि उस दिन ऑफिस से जल्दी ही निकल गई, वह राहुल को यह खुशखबरी देना चाहती थी । निधि दरवाजे की घंटी बजाने ही वाली थी कि राहुल के कमरे से आ रही तेज आवाज़ों को सुन रुक गई,
"अरे राहुल, शादी की मिठाई कब खिला रहा है ?"
"अबे साले, शादी के लिए लड़की भी तो चाहिए, तू दारू पी दिमाग़ मत चाट"

"पर राहुल, तू तो निधि से प्यार करता है ना, फिर शादी भी तो उसी से ...."

"मैं और निधि से शादी करूँगा ? तू पगला गया है क्या ? उस लड़की का क्या भरोसा जो शादी से पहले ही मेरे साथ ....."

आगे के शब्द सहस्र बिच्छुओं के डंक के बराबर थे |

(मौलिक व अप्रकाशित)

पिछला पोस्ट =>शातिर (अतुकांत)

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 1, 2013 at 7:47pm

आदरणीय गिरिराज भाई साहब, आपकी टिप्पणी उत्साहवर्धन करती है, बहुत बहुत आभार । 

Comment by VISHAAL CHARCHCHIT on October 26, 2013 at 11:10pm

वाह बागी भाई जी वाह....... आज के परिवेश में आसपास बिखरी पड़ी इस कड़वी सच्चाई को आपने समेट कर एक सुन्दर औए सोचने पर मजबूर करने वाली कहानी के रूप में पेश कर दिया..... हार्दिक बधाई भाई जी !!!

Comment by ram shiromani pathak on October 25, 2013 at 8:28pm


आधुनिक विचारधारा के दुष्परिणाम के यथार्थ से अवगत कराती आपकी लघुकथा ////हार्दिक बधाई आदरणीय गणेश जी //सादर

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on October 25, 2013 at 6:40pm

लड़की कितनी ही पढ़ी लिखी क्यों न हो झूठी तारीफ में सर्वस्व न्योछावर कर देती है, हर बात में कंधे से कंधा मिलाकर चलने का परिणाम तो उसे भोगना ही होगा।  माता पिता का कहा न मानने को आधुनिक विचारधारा से जोड़कर सहेलियों के बीच वाह वाही लूटती  हैं और बाद में .........। बधाई गणेश भाई लघु कथा की ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 25, 2013 at 4:32pm

वास्तविकता जो आजकल अक्सर देखने को मिलती है, किसी के चेहरे तो देख के चरित्र का आकलन नहीं किया जा सकता ऐसी जगह विवेक ही काम करता है,

आदरणीय बागी जी आज की इस सच्चाई को उजागर करती इस कामयाब लघुकथा के लिये बधाई

Comment by Saarthi Baidyanath on October 25, 2013 at 2:47pm

आदरणीय ...बहुत कुछ कहती है आपकी ये लघुकथा !...आंदोलित करने वाला है एक एक शब्द  ..! शीर्षक को सार्थक करती और अपने कथ्य को  मकसद तक पहुंचाती एक सुन्दर कृति !...बधाई आपको ! कोटिशः बधाई !.... एक प्रश्न छोड़ जाती है ये मस्तिष्क में ??

Comment by vijay nikore on October 25, 2013 at 12:09pm

संदेश देती सार्थक लघु कथा के लिए बधाई।

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 25, 2013 at 11:55am

आदरणीय भ्राताश्री लघुकथा का शीर्षक आपने एकदम सटीक लिया है वर्तमान समय में इस तरह की तमाम घटनाएँ हो रही हैं भोली भाली लड़कियां , लड़कों के बुने हुए जाल में फँसती चली जाती हैं. लड़कों के निजी स्वार्थ को बिना सोच विचार के प्रेम समझने की भूल कर जाती हैं. आपने लघुकथा जिस तरह के जरिये इस तथ्य को उजागर किया है और शब्द दिए हैं अत्यंत प्रसंशनीय है. कामयाब लघुकथा हेतु हृदयतल से ढेरों बधाइयाँ स्वीकारें.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 25, 2013 at 11:50am

बहुत सार्थक व् सटीक लघुकथा, सच! आज के समय में सच्चा प्यार कहाँ मिलता है, शायद यह सब हमारे माता-पिता को ईश्वर, पहले से जानकारी दे देता हो कि क्या गलत है और क्या सही ? , परन्तु प्रेम तो हृदय में  ओस  कि तरह पवित्र  व् पहाड़ कि तरह अटल भावनाओं से होता है ,
आज के  समय में, एक दूसरे को देख, भावुकता में बहक रहे, नवयुवकों-नवयुवतियों  को सबक देती, लघुकथा पर बधाई स्वीकारें आदरणीय गणेश जी  

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 25, 2013 at 10:02am

आदरणीय बागी जी  ..संयोग की बात है की निधि ने सुन लिया नहीं तो उसकी जिन्दगी ही बेकार हो जाती है .अब सच्चा प्यार ढूढे नहीं मिल रहा है ..हर जगह धोखा ही धोका है ..आपकी रचना भावुकता में बह रही नवयुवकों और नवयुवतियों के लिए एक सन्देश है ..इस सार्थक लघु कथा के लिए आपको हार्दिक बधाई ..सादर 

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