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ग़ज़ल - निलेश 'नूर'- धडक मत ऐ दिले नादाँ, किसी की याद आई है

१२२२,१२२२,१२२२,१२२२
.
वो लेतें है शिकायत में, कि लेतें है मुहब्बत में,
हमारा नाम लेतें है वो अपनी हर ज़रूरत में,
***

मै राजा और तुम रानी, ये दुनियाँ सल्तनत अपनी,
हक़ीक़त में नहीं होता, ये होता है हिक़ायत में.
***

ये रुतबा, ओहदा, शुहरत, सभी हमनें भी देखें है,
छुपा है कुछ, नुमाया कुछ, शरीफ़ों की शराफ़त में. 
*** 

मेरे ही क़त्ल का इल्ज़ाम क़ातिल ने मढ़ा मुझ पर,
गवाही भी वही देगा, वो ही मुंसिफ़ अदालत में.    
***

न तुम शीरीं न मै फ़रहाद, लैला तुम न मै मजनूं
जुदा होना ही बेहतर है, रखा क्या है बग़ावत में. 
***

धडक मत ऐ दिले नादाँ, किसी की याद आई है,
लगे शोरे क़यामत सी,  तेरी धकधक इबादत में.
***

निगाहें, दिल, किताबें, ख़त, सितारें, चाँद, ग़ज़लें, ‘नूर’    
लिखा इतना ही था मक़तूल शाइर की वसीयत में. 
******************************************************
निलेश 'नूर' - मौलिक एवं अप्रकाशित 

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2013 at 8:01am

धन्यवाद सुशिल जी 

Comment by Sushil.Joshi on October 24, 2013 at 8:29pm

वाह वाह आ0 नीलेश जी.... मज़ा आ गया गज़ल पढ़कर....... क्या कहने..... एक एक शेर काबिले तारीफ़..... बहुत बहुत दाद कुबूल करें....

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 24, 2013 at 9:07am

आदरणीय जितेन्द्र जी, बृजेश जी, मीना जी, अन्नपूर्णा जी, अरुण जी, रम शिरोमणि जी, विजय जी, कुंती जी, आशुतोष जी .... आप सबके स्नेह से मन भीग गया है .... आभार
आदरणीय वीनस केसरी  जी .. 'अक्सर हर' से मेरा तात्पर्य "almost every"... क्यूँ की मै sure नहीं दिखना चाह रहा था कि 'वो शिकायत में नाम लेतें ही है".. आप की सलाह बहुमूल्य है. मै इसे बदलाव में शामिल किये ले रहा हूँ ..धन्यवाद             

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 23, 2013 at 10:44pm

न तुम शीरीं न मै फ़रहाद, लैला तुम न मै मजनूं

जुदा होना ही बेहतर है, रखा क्या है बग़ावत में.......वाह! बहुत खूब

एक से बढकर,एक शेर  लाजवाब गजल, दिली दाद कुबूल कीजिये आदरणीय निलेश जी

Comment by बृजेश नीरज on October 23, 2013 at 10:20pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल है! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Meena Pathak on October 23, 2013 at 7:08pm

न तुम शीरीं न मै फ़रहाद, लैला तुम न मै मजनूं 
जुदा होना ही बेहतर है, रखा क्या है बग़ावत में. ........................बहुत बहुत सुन्दर गज़ल, बहुत बहुत बधाई स्वीकारे आदरणीय | सादर 
***

Comment by annapurna bajpai on October 23, 2013 at 6:24pm

न तुम शीरीं न मै फ़रहाद, लैला तुम न मै मजनूं 
जुदा होना ही बेहतर है, रखा क्या है बग़ावत में. ...................... सुंदर पंक्तियाँ , अच्छा संदेश देती गजल हेतु बहुत बधाई । 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 23, 2013 at 5:09pm

वाह वाह आदरणीय जबरदस्त ग़ज़ल कही है आपने हरेक शेर जोरदार है क्या कहने इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद कुबूल फरमाएं.

Comment by ram shiromani pathak on October 23, 2013 at 4:07pm

मेरे ही क़त्ल का इल्ज़ाम क़ातिल ने मढ़ा मुझ पर, 
गवाही भी वही देगा, वो ही मुंसिफ़ अदालत में.    ////आदरणीय नीलेश जी ज़ोरदार ग़ज़ल कही है आपने //हार्दिक बधाई आपको ! 

Comment by विजय मिश्र on October 23, 2013 at 3:49pm
"ये रुतबा, ओहदा, शुहरत, सभी हमनें भी देखें है,
छुपा है कुछ, नुमाया कुछ, शरीफ़ों की शराफ़त में |" और फिर

"धडक मत ऐ दिले नादाँ, किसी की याद आई है,
लगे शोरे क़यामत सी, तेरी धकधक इबादत में |"
-- निलेशजी ! ये कहना बेमानी है कि गजल खूबसूरत है , जो पढ़ेगा वही कहेगा . इन दो शे'रों में जिस आगाज का बेलौस इजहार किया है आपने ,नजर से गुजरते ही इतर की तरह पूरे दिल के कायनात में खुशबू फैला दे रहा है . बहुत उम्दा शे'रों का गुंचा है आपकी ये गजल .बेहद जानदार . दिली मुबारकवाद .

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