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खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी

खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी 

=================

चेहरा तुम्हारा पढ़ लूँ

पल भर तो ठहर जाना 

नैनों की भाषा क्या है 

कुछ गुनगुना सुना-ना 

-------------------------

*आईना जरा मै देखूँ 
क्या मेरी छवि बसी है  

कोमल-कठोर बोल तू 
पलकें उठा , शरमा-ना

------------------------

आँखों मे आँखें डाले 

मै मूर्ति बन गया हूँ

पारस पारस सी हे री !

तू जान डाल जा ना

------------------------

खिलता गुलाब तू है 

कांटे भी तेरे संग हैं 

बिन खौफ मै ‘भ्रमर’ हूँ 

खिदमते-इश्क़ पेश आ ना 

------------------------------

खुश्बू फ़िज़ा मे बिखरी 

मदमस्त है पवन भी 

अल्हड नदी यूँ दामन- 

को छेड़ती तो न जा 

-------------------------

*अम्बर कसीदाकारी 
धरती पे छवि है न्यारी 
बदली है खोले घूँघट
लव खोल कुछ सुना-ना ..

-----------------------

सपने सुहाने दे के 

बिन रंगे चित्र ना जा 

ले जादुई नजर री !

परियों सी उड़ के ना जा 

---------------------------

"मौलिक व अप्रकाशित" 

सुरेन्द्र कुमार शुक्ल 'भ्रमर'५

प्रतापगढ़

वर्तमान -कुल्लू हि . प्र.

09.10.2013

10.15-11.00 P.M.

*संशोधित 

Views: 814

Comment

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Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 19, 2013 at 9:39pm

प्रिय भंडारी भाई जी ...जय श्री राधे ...प्रोत्साहन हेतु आभार अपना स्नेह बनाये रखें रचना आप को भायी सुन ख़ुशी हुयी

जल्दबाजी में कुछ त्रुटी रह गयी यहाँ एडिट होना भी मुश्किल रहता है आगे कोशिश होगी सुधार की


भ्रमर ५

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on October 19, 2013 at 9:38pm

प्रिय अखिलेश जी ...जय श्री राधे ...प्रोत्साहन हेतु आभार

जी जल्दबाजी में कुछ त्रुटी रह गयी यहाँ एडिट होना भी मुश्किल रहता है आगे कोशिश होगी सुधार की


भ्रमर ५

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 4:10am

यद्दपि एक सुंदर रचना है आदरणीय सुरेन्द्र कुमार जी... किंतु भाई अरुन के विचारों से सहमत हूँ.... मैं लयवत इस रचना को पढ़ रहा था कि अचानक लय टूट सी गई क्योंकि प्रवाह रास्ता भटक गया... फिर भी भावों के लिए आप निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं....

Comment by वेदिका on October 14, 2013 at 11:23pm

दूसरे बंद को छोड़कर  एक खूबसूरत गजलनुमा की प्रस्तुति हुयी|

बधाई!!

Comment by MAHIMA SHREE on October 14, 2013 at 11:14pm

आदरणीय भ्रमर सर .. सुंदर प्रयास हुआ है .. हार्दिक बधाई  

 

दुसरे बंद का भाव मैं समझ नहीं पायी ...  सादर

Comment by Meena Pathak on October 13, 2013 at 7:28pm

बहुत सुन्दर .. बधाई आप को 

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 13, 2013 at 5:04pm

आदरणीय भ्रमर जी एक बहुत ही अच्छा प्रयास था किन्तु जल्दबाजी कर गए आप समतुकांत न होने के कारण प्रवाह बाधित हुआ सो हुआ मजा भी किरकिरा हो गया.

अम्बर कसीदाकारी 

अद्भुत नये रंगों से 

बदली है खोले घूँघट

कुछ शेर गुनगुनाना .. आदरणीय शे'र कहे या सुनाये जाते हैं गुनगुनाये नहीं जाते मेरे हिसाब से.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 13, 2013 at 4:44pm

आदरणीय सुरेन्द्र जी सुंदर भावो को सहेजे इस सुंदर रचना के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2013 at 10:52am

आईना जरा मै  देखूँ 

क्या मेरी छवि बसी है 

इतना कठोर बोलने को 

कसमसा रही है …….बहुत सुंदर भाव, आत्ममंथन कराती पंक्तियाँ

बहुत बढ़िया रचना, बहुत बहुत बधाई आदरणीय सुरेन्द्र जी

Comment by Shyam Narain Verma on October 12, 2013 at 5:51pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!

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